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आगम साहित्य की रूपरेखा
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के नमिप्रव्रज्या आदि कुछ अध्ययनों पर भी इन्होंने शोधकार्य किया है। निक्षेप पर इनका महत्त्वपूर्ण कार्य है। लुप्स दृष्टिवाद की विषयवस्तु के बारे में भी इन्होंने विमर्श किया है। जैन आगमों के अतिरिक्त अन्य जैन साहित्य पर इन्होंने विपुल मात्रा में कार्य किया है। जिसकी अवगति L. Alsodorf, Kleine Schriften पुस्तक से प्राप्त की जा सकती है।
जर्मन विद्वानों से सम्बन्धित तथ्यों के लिए 'German Indologists' पुस्तक हमारा मुख्य आधार रही है।
प्राकृत भाषा में निबद्ध आगम साहित्य, जैन साहित्य का प्राचीनतम भाग है। सम्पूर्ण जैन धर्म/दर्शन के मूल स्रोत जैन आगम ही हैं। प्राचीनकाल से ही आगमों की व्याख्या के लिए नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, टब्बा आदि ग्रन्थों का प्रणयन होता रहा है। प्राचीन जैनाचार्यों ने आगमों की व्याख्या में अपने मति-बल का प्रचुर नियोजन किया है। आधुनिक युगमेंभीभारतीय विद्वानों द्वारा आगमों पर कार्य हो रहे हैं।
भारतीय विद्वान्
सन् 1 9 1 5 में मेहसाना की आगमोदय समिति ने प्राय: सभी आगमों का प्रकाशन किया। सन् 1 9 20 में हैदराबाद से ऋषि अमोलक ने जैन सूत्र बत्तीसी प्रकाशित की । यद्यपि उसका सम्पादन आलोचनात्मक नहीं था।
स्व. मुनिश्री पुण्यविजयजी एवंमुनिजम्बूविजयजीनेजैनआगमों केसम्पादन का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। आगम प्रकाशन की श्रृंखला के प्रथम खंड में नंदी तथा अनुयोगद्वार तथा द्वितीय खंड में आचारांग विस्तृत पाठ भेदात्मक टिप्पणियों सहित तथा अन्य आगम भी श्री महावीर जैन विद्यालय (मुम्बई) से प्रकाशित हो चुके हैं।
__ आचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज, आचार्यश्री आत्मारामजी, मुनिश्री घासीलालजी, मुनिश्री कन्हैयालालजी 'कमल' तथा युवाचार्यश्री मधुकर मुनि ने भी आगम साहित्य पर कार्य किया है।
सन् 1 9 5 5 में आचार्यश्री तुलसी के वाचना प्रमुखत्व में जैन आगमों के सम्पादन की बृहद् कार्य-योजना प्रारम्भ हुई। उसमें जैन आगमों के पाठ संशोधन एवं विस्तृत आलोचनात्मक एवं अनुसंधानात्मक टिप्पणों के साथ अनुवाद कार्यचल रहा है। यह योजना वर्तमान में आचार्यश्री महाप्रज्ञ के दिशा निर्देश में अबाधगति से सतत गतिशील है। इस वाचना में अनेक आगमों का कार्य सम्पन्न हो चुका है जिसकी अवगति निम्न तालिका से प्राप्त की जा सकती है
मूलपाठ संशोधन बत्तीस ही आगमों का हो चुका है।
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