SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 76 शुब्रींग श्री शुब्रींग ने अनेक जैन ग्रन्थों का संपादन किया है। इनके द्वारा संपादित Acarangsutra, erster srutaskandha का प्रकाशन सन् 1918 में Leipzig से Text, Analyse und glossar Abhandlungin yuer die Kunde des morgen landes नामक सिरीज में हुआ । 1918 में ही इन्होंने इसी सिरीज से 'व्यवहार और निशीथ' का प्रकाशन किया। इसके पश्चात् Studien zum Mahanisihasutta (महानिशीथ) नाम से दो ग्रन्थ क्रमश: 1951 और 1963 में प्रकाशित हुए । शुब्रींग द्वारा संपादित कुछ ग्रन्थों की हिन्दी प्रतिलिपि का प्रकाशन ‘जैन साहित्य संस्थान समिति' पूना से हुआ है। जैन आगम में दर्शन शुब्रींग ने दशवैकालिक सूत्र का भी अनुवाद किया था जो 1932 में अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ । इस ग्रन्थ का संपादन शुब्रींग के गुरु E Leumann ने किया था। शुब्रींग के स्वर्गवास के पश्चात् उनके द्वारा संपादित दो ग्रन्थ एवं एक अनुवादित ग्रन्थ 1969 में प्रकाशित हुए। एक ग्रन्थ 'गणिविज्जा' Indo Iranian Journal XI-2 में प्रकाशित हुआ, जो शकुनविद्या से सम्बन्धित था। दूसरा 'तन्दुलवेयालिय' नामक ग्रन्थ था, जो Paramedical से सम्बन्धित था। एक अन्य कार्य जो Isibhasiyaim, Aussprueche der Weisen, Aus dem prakrit der Jaina Uebersetzt (Isibhasiyaim, Translated from the prakrit of the Jains) नाम से प्रकाश में आया जो 'इसिभासियं' का अनुवाद था । शार्पेन्टियर शार्पेन्टियर (Jarl Charpentier) ने 'उत्तराध्ययन' सूत्र के मूल पाठ का संशोधन किया है तथा उसके पाठान्तर भी दिए हैं। इस ग्रन्थ में उन्होंने Introduction में जैन आगमों के संक्षिप्त परिचय के साथ ही सामान्य रूप से उनकी विषय-वस्तु का वर्णन भी किया। जैन हस्तलिखित प्रतियों का, विशेषत: उत्तराध्ययन से सम्बन्धित प्रतियों के बारे में विशेष जानकारी है। उसका कचित् भाषा-शास्त्रीय आयाम भी लेखक ने प्रस्तुत किया है। इस ग्रन्थ में लेखक ने आवश्यक आलोचनात्मक टिप्पण भी दिए हैं तथा उत्तराध्ययन की एक टीका भी इसके साथ छपी है। इस ग्रन्थ का प्रथम भारतीय संस्करण 1980 में Ajay Book Service नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। अल्सडोर्फ अल्सडोर्फ (Ludwig Alsdorf 1904-1978) जैन विद्या के विशेषज्ञ थे । इन्होंने जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के आधार पर जैन सृष्टि का वर्णन (Cosmography) किया है। उत्तराध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy