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जैन आगम में दर्शन
रचने के पश्चात् महाबंध नाम के छठे खण्ड की तीस हजार श्लोक प्रमाण रचना की।' इस छठे खण्ड को ‘महाधवल' के नाम से भी जाना जाता है। __ वीरसेनाचार्य ने इन छह खण्डों पर 72 हजार श्लोक प्रमाण धवला टीका की रचना की। नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने षड्खण्डागम के आधार पर गोम्मटसार लिखा। जिसके जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड से दो विभाग हैं। कषाय-प्राभृत
प्रस्तुत ग्रन्थ की उत्पत्ति पांचवें ज्ञानप्रवाद पूर्व की दसवीं वस्तु के तीसरे पेज्जदोसपाहुड से हुई है। पेज्ज नाम प्रेयस्या राग का है और दोष नाम द्वेष का है। इस ग्रन्थ में क्रोध आदि चार कषायों और हास्य आदि नो कषायों का विभाजन राग और द्वेष के रूप में किया गया है, अत: प्रस्तुत ग्रन्थ का मूल नाम पेज्जदोसपाहुड है और उत्तरनाम कसायपाहुड है। कषायों की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन करने वाले पदों से युक्त होने के कारण प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम 'कसायपाहुड रखा गया है, जिसका संस्कृत रूपान्तर कषाय-प्राभृत है। 'कषायप्राभृत' प्राकृत भाषा गाथा सूत्रों में निबद्ध है। ___ कषायप्राभृत की जयधवला टीका में तीसरे पेज्जपाहुड का परिमाण सोलह हजार पदप्रमाण बतलाया है। उस विशाल प्राभृत को आचार्य गुणधर ने मात्र एक सौ अस्सी गाथाओं में उपसंहृत किया है।
कसायपाहुड में कुल 2 3 3 गाथाएं हैं। 1 8 0 गाथाओं के अतिरिक्त 5 3 गाथाएं और हैं। इनको 1 8 0 में जोड़ने से 2 3 3 गाथाएं हो जाती हैं। वीरसेन ने इन समस्त गाथाओं के कर्ता गुणधराचार्य को ही माना है। यद्यपि गुणधराचार्य ने स्वयं ने ग्रन्थ के प्रारम्भ में 180 गाथाओं का निर्देश किया है।
कसायपाहुड करणानुयोग के अन्तर्गत है। इसमें मुख्य चर्चा कर्म से सम्बन्धित ही है। ' आचार्य गुणधर ने इस ग्रन्थ में मोहनीय कर्म के प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेश के उल्लेख के साथ ही बन्ध सत्ता, उदीरणा का निर्देश मात्र करके संक्रमण का कुछ विस्तार से वर्णन किया है।
1. षट्खण्डागम, प्रस्तावना पृ. 59 में उद्धृत, इन्द्रश्रुतावतार,......षट्सहस्रग्रंथान्यथ पूर्वसूत्रसहितानि, प्रविरच्य
महाबंधाह्वयं तत: षष्ठकं खण्डम् । त्रिंशत् सहस्रसूत्रग्रंथं व्यरचयदसौ महात्मा। 2. कसायपाहुडसुत्त, गाथा 1, पुव्वम्मिपंचमम्मि दु दसमे वत्थुम्मि पाहुडे तदिसं।
पेजत्तिपाहुडम्मिदुहवदि कसायाण पाहुडंणाम॥ 3. कसायपाहुड (प्रथमोऽधिकार: पेज्जदोसबिहत्ती) (संपा. पं. फूलचन्द्र, पं. महेन्द्रकुमार, पं. कैलाशचन्द्र, मथुरा,
1974) पृ. 9, तं तदियपाहुडं किण्णाममिदिवुत्ते पेज्जपाहुडं' त्ति तण्णामं भणिदं तत्थ एवं कसायपाहुडं होदि
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