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आगम साहित्य की रूपरेखा
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छेदसूत्र
छेदसूत्रों में जैन साधुओं के आचार से सम्बन्धित विषय का पर्याप्त विवेचन किया गया है। इस विवेचन को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है-उत्सर्ग, अपवाद, दोष और प्रायश्चित्त । उत्सर्ग का अर्थ है किसी विषय का सामान्य विधान । अपवाद का अर्थ है परिस्थिति विशेष की दृष्टि से विशेष विधान अथवा छूट । दोष का अर्थ है उत्सर्ग अथवा अपवाद का भंग, प्रायश्चित्त का अर्थ है व्रतभंग के लिए समुचित दण्ड । किसी भी विधान अथवा व्यवस्था के लिए ये चार बातें आवश्यक होती हैं।
छेदसूत्रों का जैनागमों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैन संस्कृति का श्रमण-धर्म है। श्रमणधर्म की सिद्धि के लिए आचार-धर्म की साधना अनिवार्य है। आचार-धर्म के गूढ रहस्य एवं सूक्ष्मतम क्रियाकलाप को समझने के लिए छेद-सूत्रों का ज्ञान अनिवार्य है। छेदसूत्र के माध्यम से ही जैन आचार की सर्वांगीणता हृदयंगम हो सकती है।
छेदसूत्रों की संख्या के सम्बंध में श्वेताम्बर परम्परा में एकरूपता नहीं है। स्थानकवासी एवं तेरापंथी परम्परा चार छेदसूत्र मानती हैं- 1. दशाश्रुतस्कन्ध 2. बृहत्कल्प 3. व्यवहार एवं 4. निशीथ । जबकि श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय महानिशीथ एवं जीतकल्प ये दो सूत्र मिलाकर छह छेद सूत्र मानती है। आगम-साहित्य की संख्या
मूलत: आगम साहित्य अंग प्रविष्ट एवं अंगबाह्य इन दो भागों में विभक्त था । परवर्ती काल में अंगबाह्य आगम पांच भागों में विभक्त हो गया-1. उपांग 2. मूलसूत्र 3. छेदसूत्र 4. चूलिका सूत्र 5. प्रकीर्णक।
आगमों की संख्या के विषय में अनेक मत प्रचलित हैं। उनमें तीन मुख्य हैं- 1. चौरासी 2.पैंतालीस 3. बत्तीस।
11 अंग, 1 2 उपांग, 4 मूल, 6 छेद, 10 प्रकीर्णक, 2 चूलिकासूत्र-येपैंतालीस आगम श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में मान्य हैं। स्थानकवासी एवं तेरापंथी इनमें से 10 प्रकीर्णक, जीतकल्प, महानिशीथ और पिण्डनियुक्ति इन तेरह ग्रंथों को कम करके बत्तीस आगम मान्य करते हैं।
__ जो चौरासी आगम मान्य करते हैं वे दस प्रकीर्णकों के स्थान पर तीस प्रकीर्णक मानते हैं। इसके साथ दस नियुक्तियां, यतिजीतकल्प, श्राद्धजीतकल्प, पाक्षिकसूत्र, क्षमापना सूत्र, वन्दित्तु, तिथिप्रकरण, कवचप्रकरण, संशक्तनियुक्ति और विशेषावश्कभाष्य को भी आगमों में सम्मिलित करते हैं।'
1. जैन, सागरमल, सागर जैन विद्या भारती, भाग 2, (वाराणसी, 1995) पृ. 9
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