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________________ आगम साहित्य की रूपरेखा 57 प्रश्नव्याकरण इस आगम का द्वादशांगी में दसवां स्थान है। पणहावागरणाइं' अथवा पण्हावागरणदसाओ ये दो नाम प्रस्तुत आगम के उपलब्ध होते हैं। विषयवस्तु इस आगम की विषय वस्तु के सम्बन्ध में समवायांग, नंदी आदि आगमों के वर्णन में भिन्नता है। समवायांग के अनुसार इसमें एक सौ आठ प्रश्न, एक सौ आठ अप्रश्न, एक सौ आठ प्रश्न-अप्रश्न, विद्या के अतिशय तथा नाग और सुपर्ण देवों के साथ हुए दिव्य संवादों का उल्ले ख है।' तत्त्वार्थ के वर्णन के अनुसार इसमें अनेक आक्षेप-विक्षेप के द्वारा हेतु और नय आश्रित प्रश्नों के समाधान है तथा लौकिक एवं वैदिक अर्थों का भी निर्णय इसमें है।' उक्त ग्रन्थों में प्रस्तुत आगम का जो विषय वर्णित है वह आज उपलब्ध नहीं है। आज जो उपलब्ध है उसमें पांच आश्रवों तथा पांच संवरों का वर्णन है। इस संदर्भ में यह अनुमान भी किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम के प्राचीन स्वरूप के विच्छिन्न हो जाने पर किसी आचार्य द्वारा नए रूप से इसकी रचना की गई हो। नंदी में प्रस्तुत आगम की जिस वाचना का विवरण है, उसमें आश्रवों और संवरों का वर्णन नहीं है, किंतु नंदीचूर्णि में उनका उल्लेख मिलता है। यह संभव है कि चूर्णिकार ने उपलब्ध आकार के आधार पर उनका उल्लेख किया है।' विपाकसूत्र विपाकसूत्र का द्वादशांगी के क्रम में ग्यारहवां स्थान है। विवागसुयं एव कम्मविवागदसा' ये दो नाम प्रस्तुत आगम के उपलब्ध होते हैं। विषयवस्तु एवं आकार दुःख विपाक एवं सुख विपाक नामक दो विभागों में यह प्रस्तुत आगम विभक्त है। विपाकसूत्र के प्रारम्भ में ही सुधर्मा स्वामी एवं जम्बूस्वामी का विस्तृत परिचय उपलब्ध है। इस आगम के दो श्रुत स्कन्ध बताए गए हैं। दुःख विपाक एवं सुख विपाक- दोनों के ही दसदस अध्ययन हैं। 1. (क) समवाओ, पइण्णगसमवाओ, 98 (ख) नंदी सूत्र, 90 2. ठाणं, 10/110 3. समवाओ, पइण्णगसमवाओ, 98 4. तत्त्वार्थवार्तिक, 1/20 5. अंगसुत्ताणि, भाग 3, भूमिका पृ. 28 6. समवाओ, पइण्णगसमवाओ, 99 7. ठाणं, 10/110 8. अंगसुत्ताणि, भाग 3 (विपाकसूत्र)2/10/2:कापरिशेष-विवागसुयस्सदोसुयक्खंधा दुहविवागोसुहविवागो य। तत्थ दुहविवागे दस अज्झयणा...........एवं सहविवागे वि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
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