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जैन आगम में दर्शन
विषय-वस्तु
वासुदेव कृष्ण और उनके परिवार के सम्बन्ध में इस आगम में विशद जानकारी मिलती है। वासुदेव कृष्ण के छोटे भाई गजसुकुमाल की दीक्षा और उनकी साधना का वर्णन बहुत ही रोमांचकारी है।' __ छठे वर्ग में अर्जुनमालाकार की घटना का उल्लेख है। बाह्य परिस्थिति से किस प्रकार व्यक्ति के आन्तरिक भावों में परिवर्तन आ जाता है, यह इस घटनाक्रम से स्पष्ट होता है। अर्जुनमालाकार बाह्य निमित्त से हत्यारा बन जाता है तथा बाह्य निमित्त को प्राप्त कर ही साधु बन जाता है। उपादान के साथ निमित्त काभी महत्त्व है। प्रस्तुत घटनाक्रम में यह सत्य अभिव्यक्त
हुआ है।
इस आगम में अतिमुक्तक आदि साधकों के उल्लेख तथा बाह्य तपस्या का विशद वर्णन हुआ है। अनुत्तरोपपातिक दशा
जैन-परम्परा में सौधर्म आदि बारह स्वर्ग, नव ग्रैवेयक एवं पांच अनुत्तर विमान- ये छब्बीस प्रकार के देवलोक माने गए हैं। विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित एवं सर्वार्थसिद्ध ये पांच अनुत्तर विमान हैं। इनसे श्रेष्ठ अन्य विमान नहीं है अतः इन्हें अनुत्तर विमान कहते हैं। जो व्यक्ति अपने तप साधना के द्वारा इन विमानों में उपपात अर्थात् जन्म प्राप्त करते हैं उन्हें अनुत्तरोपपातिक कहा जाात है। जिस आगम में इस स्वर्ग समूह में उत्पन्न होने वाले व्यक्तियों का वर्णन है उसे अनुतरोपपातिकदशा के नाम से अभिहित किया गया है। अनुत्तरोपपातिक दशा : आकार एवं विषय वस्तु
यह अंगों में नवम अंग है। उसके एक श्रुत-स्कन्ध, तीन वर्ग, तीन उद्देश्य काल, तीन समुद्देशन-काल आदि हैं। स्थानांग में इसके दस अध्ययन एवं समवायांग में दस अध्ययन एवं तीन वर्ग दोनों का उल्लेख है। वर्तमान में इस आगम का स्वरूप तीन वर्गात्मक है। विषयवस्तु
अनुत्तरोपपातिकदशा में अनुत्तरोपपातिक मनुष्यों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता-पिता आदि तथा अनुत्तरविमान में देवों के रूप में उत्पत्ति, सुकुल में पुनरागमन, पुनर्बोधिलाभ और अन्त क्रिया आदि का वर्णन है।'
1. अंगसुत्ताणि, भाग 3, (संपा. मुनि नथमल, लाडनूं, वि.सं. 20 3 1) भूमिका पृ. 25 2. नंदी सूत्र, 891 3. ठाणं, 10/114 4. समवाओ, पइण्णगसमवाओ, 97 : दस अज्झयणा तिण्णि वग्गा.... 5. नंदी सूत्र, 89
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