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________________ आगम साहित्य की रूपरेखा ज्ञाताधर्मकथा प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का छठा अंग है। इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध का नाम 'नाया' और दूसरे श्रुतस्कन्ध का नाम 'धम्मकहाओ' है। दोनों श्रुतस्कन्धों का एकीकरण करने पर प्रस्तुत आगम का नाम 'नायाधम्मकहाओ' बनता है। 'नाया' (ज्ञात) का अर्थ उदाहरण और 'धम्मकहाओ' का अर्थ धर्म-आख्यायिका है। प्रस्तुत आगम में चरित और कल्पित दोनों प्रकार के दृष्टान्त और कथाएं हैं। जयधवला में प्रस्तुत आगम का नाम 'नाहधम्मकहा' (नाथधम्मकथा) मिलता है। नाथ का अर्थ है स्वामी। नाथधर्मकथा अर्थात् तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित धर्मकथा। कुछ संस्कृत ग्रन्थों में प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' उपलब्ध होता है। आचार्य मलयगिरि और अभयदेवसूरि ने उदाहरण प्रधान धर्मकथा को ज्ञाताधर्मकथा कहा है। उनके अनुसार प्रथम अध्ययन में 'ज्ञात' और दूसरे अध्ययन में 'धर्मकथाएं' है। दोनों ने ही ज्ञात पद के दीर्धीकरण का उल्लेख किया है। यदि ज्ञात को दीर्घ नहीं होता तो 'नाय' होता 'नाया' नहीं होता। आकार-प्रकार प्रस्तुत आगम में दो श्रुतस्कन्ध, उनतीस अध्ययन, उनतीस उद्देशनकाल, उनतीस समुद्देशनकाल तथा पदप्रमाण से संख्येय हजार पद हैं। वर्तमान में प्राप्त इस ग्रन्थ के दो श्रुतस्कन्धों में प्रथम में उन्नीस अध्ययन तथा दूसरे में दस वर्ग है इन दोनों की संख्या मिलाने से वे उनतीस हो जाते हैं। प्रस्तुत प्रसंग में यह ध्यातव्य है कि इस ग्रन्थ के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के दस वर्गों के अलग-अलग अध्ययन दिए गए हैं, जैसे-प्रथम वर्ग के पांच, द्वितीय वर्ग के पांच, तृतीय वर्ग के चौवन, चतुर्थ वर्ग के चौवन, पंचम वर्ग के बत्तीस, षष्ठ के बत्तीस, सप्तम वर्ग के चार, अष्टम वर्ग के चार, नवम वर्ग के आठ एवं दशम वर्ग के भी आठ अध्ययनों का उल्लेख है। नंदी में अध्ययनों की संख्या उनतीसदी हैइस संख्या का मेल प्रथम श्रुतस्कन्ध के अध्ययन एवं द्वितीय श्रुतस्कन्ध के वर्ग मिलाने से ही बैठता है। पाश्चात्य विद्वान् विंटरनित्ज़ ने इसके प्रथम श्रुतस्कन्ध के इक्कीस अध्ययन बतलाये हैं। किंतु उनकी यह सूचना प्रस्तुत आगम के संदर्भ में समीचीन नहीं है क्योंकि इस श्रुतस्कन्ध के उन्नीस अध्ययन ही उपलब्ध हैं, इक्कीस नहीं हैं। 1. अंगसुत्ताणि-3 भूमिका पृ. 21 में उद्धृत - (समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सूत्र 94, तत्त्वार्थवार्तिक, 1/20, ज्ञातृधर्मकथा, नंदीवृत्ति (ले. आचार्य हरिभाद्र, बनारस, 1966) पत्र 2 30, 2 3 1 :ज्ञातानि-उदाहरणानितत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथा:, अथवा ज्ञातानि-ज्ञाताध्ययनानि प्रथमश्रुतस्कन्धे, धर्मकथा द्वितीय- श्रुतस्कन्धे यासु ग्रन्थपद्धतिष (ता ज्ञाताधर्मकथा: पुषोदरादित्वात्पूर्वपदस्य दीर्घान्तता।) . 2. नंदी, सूत्र 86 . Book 3. Winternitz., Maurice, History of Indian literature P. 428-429: The sixth Anga............. lofthis Anga consists of 21 chapters. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
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