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________________ जैन आगम में दर्शन हो चुका था । प्रस्तुत आगम तत्त्वविद्या का आकर ग्रन्थ है। इसमें चेतन और अचेतन --- इन दोनों तत्त्व की विशद जानकारी उपलब्ध है। संभवत: विश्व विद्या की कोई भी ऐसी शाखा नहीं होगी जिसकी इसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में चर्चा न हो। तत्त्वविद्या का इतना विशाल ग्रन्थ अभी तक ज्ञात नहीं है । इसके प्रतिपाद्य का आकलन करना एक जटिल कार्य है । "" 50 इस आगम के विषय अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है । इनमें विभिन्न विषयों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्यों का विश्लेषण उपलब्ध है । “ऐतिहासिक दृष्टि से आजीवक संघ के आचार्य मंखलिगोशाल, जमालि, शिवराजर्षि, स्कन्दक संन्यासी आदि प्रकरण बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। तत्त्वचर्चा की दृष्टि से जयन्ती, मद्दुक श्रमणोपासक, रोह अनगार, सोमिल ब्राह्मण, भगवान् पार्श्व के शिष्य कालासवेसियपुत्त, तुंगिया नगरी के श्रावक आदि प्रकरण पठनीय हैं। गणित की दृष्टि से पार्श्वापत्यीय अनगार के प्रश्नोत्तर बहुत मूल्यवान् हैं। 2'" भगवान् महावीर के युग में अनेक धर्म सम्प्रदाय थे । साम्प्रदायिक कट्टरता बहुत कम थी । एक धर्मसंघ के मुनि और परिव्राजक दूसरे धर्मसंघ के मुनि और परिव्राजकों के पास जाते, तत्त्वचर्चा करते और जो कुछ उपादेय लगता वह मुक्त भाव से स्वीकार करते । प्रस्तुत आगम में ऐसे अनेक प्रसंग प्राप्त होते हैं जिनमें उस समय की धार्मिक उदारता का यथार्थ परिचय मिलता है। इसमें गतिविज्ञान, भावितात्मा द्वारा नाना रूपों का निर्माण, भोजन और नाना रूपों निर्माण का सम्बन्ध, चतुर्दशपूर्वी के द्वारा एक वस्तु के हजारों प्रतिरूपों का निर्माण, भावितात्मा द्वारा आकाशगमन, पृथ्वी आदि जीवों का श्वास- उच्छ्वास, कृष्णराजि, तमस्काय, परमाणु की गति, दूरसंचार आदि अनेक महत्त्वपूर्ण प्रकरण हैं । ' प्रस्तुत आगम भगवान् महावीर के दर्शन या तत्त्वविद्या का प्रतिनिधि सूत्र है । इसमें महावीर का व्यक्तित्व जितना प्रस्फुटित है उतना अन्यत्र नहीं है । वाल्टर शुब्रिंग के अनुसार भगवती के अतिरिक्त और कोई भी दूसरा ग्रन्थ नहीं है जिसमें महावीर का जीवन चरित्र, क्रियाकलाप इतनी प्रखरता से प्रकट हुआ हो ।' मोरिस विंटरनित्ज ( Maurice Winternitz) का अभिमत इसी प्रकार का है। उनके अनुसार भगवान् महावीर के जीवन, कार्य, उनका अपने शिष्यों के साथ एवं अपने सम्पर्क में आने वालों के साथ सम्बन्ध तथा महावीर के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का जैसा वर्णन भगवती में है वैसा अन्य किसी ग्रन्थ में नहीं है । ' प्रस्तुत आगम की विषय-वस्तु अत्यन्त व्यापक एवं महत्त्वपूर्ण है । 1. भगवई, (खण्ड 1 ) भूमिका, पृ. 16 2. वही, पृ. 16 3. वही, पृ. 20-21 4. Schubring, Walther, The doctrine of the Jainas, P. 89: No other texts urnished a picture of Mahavira's character and activities as distinct as that of the Viy. in spite of the style being mostly conventional. 5. Winternitz, Maurice, A History of Indian literature P. 425: This work gives a more vivid picture than any other work, of the life and work of Mahavira, his relationship to his disciples and contemporaries, and whole personality. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
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