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आगम साहित्य की रूपरेखा
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सापेक्ष स्वीकृति जैन दर्शन में है। संग्रह नय के अनुसार आत्मा एक है और व्यवहारनय के अनुसार आत्मा अनन्त हैं।
नंदी सूत्रगत स्थानांग के विवरण में बतलाया गया है कि स्थानांग में स्वसमय, परसमय और स्वसमय-परसमय की स्थापना की जाती है।' ठाणं में आगत ‘एगे आया' यह सूत्र उभयवक्तव्यताका है। अनुयोगद्वारचूर्णिमें इस सूत्रकीजैन और वेदान्तदोनों दृष्टियोंसेव्याख्या की गई है। जैन दृष्टि के अनुसार उपयोग सब आत्मा का सदृश लक्षण है, अत: उपयोग की दृष्टि से आत्मा एक है। ___'स्थानांग' सूत्र को जैन दर्शन से सम्बन्धित विषयों का कोश कहा जा सकता है। इसमें तत्त्व, आचार, ज्ञान, इतिहास आदि विभिन्न विषयों का संग्रहण है। समवायांग
स्थानांग की तरह समवायांग भी प्रचुर विषय वाला ग्रन्थ है "जैन साहित्य में सर्वाधिक महत्त्व द्वादशांगी को प्राप्त है। प्रस्तुत सूत्र इसका चतुर्थ अंग है। इसका नाम समवाय है। इसमें विविध विषय समवेत हैं, इसलिए इसका यह सार्थक नाम है। इनके परिच्छेदों का नाम भी समवाय है। प्रथम समवाय में एक संख्या द्वारा संगृहीत विषय प्रतिपादित है। इसी प्रकार दूसरे में दो, तीसरे में तीन की संख्या द्वारा संगृहीत विषय प्रतिपादित है। सौ समवायों तक यह क्रम बराबर चलता है। उसके आगे डेढ़ सौ, दो सौ, ढाई सौ, तीन सौ- इस प्रकार संख्या बढती जाती है, अंत में वह एक कोटि-कोटि सागरोपम तक पहुंच जाती है। यहां संख्यापरक समवाय पूर्ण हो जाता है। समवाय का मूलभाग इतना ही है। इससे आगे द्वादशांगी का प्रकरण है। उसके पश्चात् अनेक प्रकीर्ण विषयों का संकलन है। प्रस्तुत सूत्र संग्रह कोटि का है। इसमें अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का संकलन हुआ है। इसकी रचना स्थानांग जैसी है। यह एक विशिष्ट प्रकार का संकलनात्मक ग्रन्थ है। विषय-वस्तु
इसमें द्वादशांगी, पूर्व साहित्य, प्रकीर्णक साहित्य का वर्णन हुआ है। खगोल, भूगोल, ब्राह्मीलिपि, कला, शीर्षप्रहेलिका आदि गणित के विषय, कर्म, क्रिया आदि विभिन्न विषयों का समावेश प्रस्तुत आगम में है।
प्रस्तुत सूत्र में अनेक ऐतिहासिक तथ्यों की सूचना मिलती है, जैसे-भगवान् महावीर ने एक दिन में एक निषद्या में चौवन प्रश्नों के उत्तर दिए थे। ऐसा ही एक और उल्लेख प्राप्त हैभगवान् महावीर अन्तिम रात्रि में कल्याण-फल विपाक वाले पचपन अध्ययन तथा पाप
1. नंदी, सूत्र 83, ससमए ठाविज्नई, परसमए ठाविज्नई, ससमयपरसमए ठाविज्जई। 2. अनुयोगद्वारचूर्णि, पृ. 8 6 3. समवाओ. भूमिका पृ. 17
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