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________________ 40 जैन आगम में दर्शन आचारांग आचार-प्ररूपणा का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें आचार की प्ररूपणा मुख्य होते हुए भी उसके परिपार्श्व में अनेक वैचारिक वीचियां तरंगित होती हुई परिलक्षित हैं। सूत्रकृतांग द्वादशांगी के अन्तर्गत द्वितीय अंग का नाम सूयगडो है। द्वादशांगी के विषय का वर्णन करने वाले समावायांग आदि में इसका यही नाम प्राप्त है।' सूत्रकृतांग नियुक्ति में इसके सूतगड, सुत्तकड एवं सूयगड ये तीन नाम उपलब्ध होते हैं।' आचार्य महाप्रज्ञ जी ने सूत्रकृतांग की भूमिका में इसके नाम के संदर्भ में निम्न विमर्श किया है 1. "सूतगड (सूतकृत)-प्रस्तुत आगम मौलिक दृष्टि से भगवान् महावीर से सूत । अर्थात् उत्पन्न है तथा ग्रन्थ रूप में गणधर के द्वारा कृत है इसलिए इसका नाम 'सूतकृत' है। 2. सुत्तगड (सूत्रकृत)- इसमें सूत्र के अनुसार तत्त्वबोध किया जाता है, इसलिए इसका नाम सूत्रकृत है। 3. सूयगड (सूचाकृत)-इसमें स्व और पर समय की सूचना कृत है, इसलिए इसका नाम सूचाकृत है। वस्तुत: सूत, सुत्त और सूय-ये तीनों सूत्र के ही प्राकृत रूप हैं। आकारभेद होने से तीन गुणात्मक नामों की परिकल्पना की गई है। सभी अंग मौलिक रूप में भगवान् महावीर द्वारा प्रस्तुत और गणधर द्वारा ग्रन्थ रूप में प्रणीत हैं, फिर केवल प्रस्तुत आगम का ही 'सूतकृत' नाम क्यों? इसी प्रकार दूसरा नाम भी सभी अंगों के लिए सामान्य है। प्रस्तुत आगम के नाम का अर्थस्पर्शी आधार तीसरा है, क्योंकि प्रस्तुत आगम में स्व समय और पर समय की तुलनात्मक सूचना के संदर्भ में आचार की प्रस्थापना की गई है। इसलिए इसका सम्बन्ध सूचना से है। समवाय और नंदी में यह स्पष्टतया उल्लिखित है __ 'सूयगडे णं ससमया सूइज्जति, पर समया सूइज्जति, ससमय-पर समया सूइज्जति। जो सूचक होता है उसे सूत्र कहा जाता है। प्रस्तुत आगम की पृष्ठभूमि में सूचनात्मक तत्त्व की प्रधानता है, इसलिए इसका नाम सूत्रकृत है। दृष्टिवाद का एक प्रकार है-सूत्र । आचार्य वीरसेन के अनुसार सूत्र में अन्य दार्शनिकों 1. (क) समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सूत्र 88 (ख) नंदी, सूत्र 80 (ग) अणुओगदाराई, (संपा. आचार्य महाप्रज्ञ, लाडनूं, 1996) सूत्र 50 2. नियुक्तिपञ्चक (सूत्रकृतांगनियुक्ति) (संपा.समणी कुसुमप्रज्ञा, लाडनूं, 1999) गाथा 2, सतगडंसुत्तकडं, सूयगडं चेव गोण्णाणि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
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