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जैन आगम में दर्शन
है। संग्रह एवं व्यवहार नय की सापेक्षता को अभिव्यंजित कर रहा है। साधना की दृष्टि से भी इस सूत्र का महत्त्व है।
आचारांग पुनर्जन्म की स्वीकृति के साथ आत्म-अन्वेषण की प्रक्रिया में साधकों को संयोजित करता है।
जैन धर्म दर्शन की षड्जीवनिकाय की अवधारणा सर्वथा मौलिक है। जिसका निर्देश प्रस्तुत आगम के प्रथम अध्ययन शस्त्र परिज्ञा में हुआ है।
आचारांग में साधना के महत्त्वपूर्ण सूत्रों का प्रतिपादन तो हुआ ही है किंतु इसका छट्ठा धुताध्ययनसाधना की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। 'अवधूत' परम्परा के साथ इसका साम्य खोजा जा सकता है। ___ नवें अध्ययन में महावीर के जीवन-दर्शन का वास्तविक चित्रण हुआ है। कहीं भी महावीर के जीवन में अति प्राकृतिक तत्त्वों का उल्लेख नहीं हुआ है। आचारांग का यह वर्णन महावीर के यथार्थ जीवन पर आधारित है। महावीर का मानवी रूप ही इससे प्रस्तुत होता है। आचारांग का महत्त्व
आचार की आराधना से जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य की प्राप्ति होती है। आचार, धर्म का आधारभूत तत्त्व है। आचारांग में आचार का निरूपण है अतः उसका महत्त्व स्वतःस्फुट है। आचार प्ररूपणा के कारण ही उसे अंगों का सार कहा गया है।'
__ आचारांग में मोक्ष का उपाय बताया गया है, इसलिए यह समूचे प्रवचन का सार है। आचारांग मुनि जीवन का आधारभूत आगम है, इसलिए इसका अध्ययन सर्वप्रथम किया जाता है। नौ ब्रह्मचर्य अध्ययनों का वाचन किए बिना आगे के आगमों का वाचन करने पर चातुर्मासिक प्रायश्चित्त का विधान किया गया है। आचारांग पढ़ने के बाद ही धर्मानुयोग, गणितानुयोग और द्रव्यानुयोग पढ़े जाते थे। नवदीक्षित मुनि की उपस्थापना आचारांग के शस्त्र परिज्ञा अध्ययन द्वारा की जाती थी। मुनि भिक्षा लाने योग्य भी आचारांग के अध्ययन से होता था। आचारांग की प्रासंगिकता
आचारांग में सम-सामयिक समस्याओं के समाधान भी उपलब्ध हैं। पर्यावरण व प्रदूषण आज की गम्भीर समस्या है। उसके समाधान के लिए अनेक वैज्ञानिक, अनेक सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थान संलग्न हैं। आचारांग में प्रदत्त षड्जीवनिकाय के संयम का सूत्र यदि आज व्यवहार के धरातल पर अवतरित हो जाए तो इस समस्या से मुक्ति पाई जा सकती है। आज से ढाई हजार वर्ष पहले प्रदूषण की कोई समस्या नहीं थी किंतु उस समय में अन्य संदर्भ में
1. आचारांग नियुक्ति गाथा 1 6, अंगाणं कि सारो? आयारो। 2. आचारांग भाष्यम्, भूमिका पृ. 22
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