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विषय-प्रवेश
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प्रकाशित हुआ।
डॉ. जोगेन्द्र चन्द्र सिकदर द्वारा लिखित Studies in the Bhagawati-Sutraनामक ग्रन्थ Research Institute of Prakrit, Jainalogy&Ahimsa, Muzaffarpur,Biharसे 1964 में प्रकाशित हुआ है। अंग्रेजी भाषा में लिखित इस ग्रन्थ में 11 अध्याय हैं।
लेखक ने प्रथम अध्याय में अर्धमागधी आगम साहित्य में भगवती का स्थान, उसका अन्य ग्रन्थों से सम्बन्ध आदि के बारे में चर्चा की है तथा भगवती को श्रमण-निर्ग्रन्थ धर्म का आकर ग्रन्थ बतलाया है।
दूसरे अध्याय में भगवती के लेखक, भाषा, शैली आदि के बारे में विचार है।
अन्य अध्यायों में क्रमश: राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, अन्य सम्प्रदायों के नेता एवं उनके सिद्धान्त, भगवान् महावीर का जीवन, राजा आदि का वर्णन, सृष्टि विज्ञान, सृष्टि संरचना विज्ञान, भूगोल, तत्त्वमीमांसा आदि जैन दार्शनिक विचार तथा साहित्य की दृष्टि से भगवती का मूल्यांकन किया है। लेखक ने परिश्रमपूर्वक भगवती के विभिन्न पक्षों का विद्वतापूर्ण प्रकाशन किया है।
श्री सिकद्दर का ही एक अन्य ग्रन्थ Conceptof Matter inJaina Philosophyनाम से उपलब्ध है। जो दस अध्यायों में विभक्त है । इस ग्रन्थ में लेखक ने जैन पुद्गल की अवधारणा का विशद विवेचन प्रस्तुत करते हुए उसकी तुलना अन्य जैनेतर दर्शनों के साथ की है। इस ग्रन्थ का यह वैशिष्टय है कि इसमें आगमों का भी यथाशक्य महत्त्वपूर्ण उपयोग हुआ है। इस ग्रन्थ का प्रकाशन PVRI वाराणसी से 1987 में हुआ।
“जैन दर्शन मनन और मीमांसा' आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा प्रणीत 701 पृष्ठ वाला जैनधर्म-दर्शन का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ 5 मुख्य खंडों एवं उनके अन्तर्गत अनेक उपखण्डों में विभाजित है। इसमें इतिहास, साहित्य, संघ-व्यवस्था, तत्त्व-मीमांसा, आचार मीमांसा, ज्ञानमीमांसा, प्रमाण मीमांसा आदि विभिन्न विषयों का समावेश है। लेखक ने स्थानस्थान पर मनोविज्ञान, आधुनिक भौतिकी विज्ञान को भी अपने विषय निरूपण की पुष्टि में प्रस्तुत किया है। इस ग्रन्थ की यह विशेषता है कि विद्वान् लेखक ने इसमें आगमिक संदर्भो का भी भरपूर उपयोग किया है। जो पाठक को एक नवीन दृष्टि प्रदान करते हैं।
डॉ. हरीन्द्रभूषण जैन ने “जैनागम के अनुसार मानव व्यक्तित्व का विकास' विषय पर अपना शोधकार्य किया है। इस शोधग्रन्थ में आठ अध्याय हैं । लेखक ने इस ग्रन्थ में श्रमण धर्म एवं श्रावक धर्म के आधार पर मानव-व्यक्तित्व विकास की अवधारणा को सम्पुष्ट किया है। इस ग्रन्थ का प्रकाशन 1974 में सन्मति ज्ञानपीठ लोहामण्डी आगरा से हुआ है।
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