SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 16 जैन आगम में दर्शन अवधारणा ऐसे ही समन्वय के प्रयत्न का परिणाम हो। जैन आगमों पर किए गए समीक्षात्मक अनुशीलनों का सर्वेक्षण जैन आगमों पर दो प्रकार के कार्य हुए हैं - संपादन, अनुवाद और टिप्पण, जिनका विवरण ग्रन्थ के प्रथम अध्याय के अन्त में दिया गया है। आगमों के इस प्रकार के कार्य के अतिरिक्त भी आधुनिक देशी-विदेशी विद्वानों द्वारा आगमों पर समीक्षात्मक कार्य हुआ है जिसका संक्षिप्त सर्वेक्षण प्रस्तुत किया जा रहा है। पाश्चात्य विद्वान् पश्चिमी जगत को जैन विद्या का परिचय लगभग दो शताब्दी पूर्व हुआ, जब सन् 1807 में मेजर कोलिन मेकन्जी (Major Colin Macknzie) ने 'एशियेटिक रिसर्चेज' में 'जैनों का विवरण' शीर्षक में तीन किश्तों में एक लेख प्रकाशित किया। इसके अनन्तर एच.टी.एच.कोलब्रूक (H.Th. Colebrooke)नेजैनधर्मकेसम्बन्ध में कुछ विचार अभिव्यक्त किए। सन् । 8 2 7 में एच.एच. विल्सन (H. H. Wilson) ने कोलक के निबन्ध पर विमर्श प्रस्तुत किया तथा इसी वर्ष फ्रेंकलिन (Francklin) ने जैन और बौद्ध सिद्धांत पर अनुसंधानात्मक लेख प्रकाशित किया। एच. एच. विल्सन ने अनेक जैन पाण्डुलिपियों का विवरण दिया । इन प्रारम्भिक प्रयत्नों के पश्चात् गंभीर अनुसंधान की दृष्टि से वेबर का जर्मन भाषा में भगवती पर अध्ययन उल्लेखनीय है। वेबर पश्चिमी जगत कोजैनसाहित्यकापरिचय करवाने में Allbrecht Weber (18 2 5 - 1901) का महत्त्वपूर्ण योगदान है। श्री वेबर ने जैन साहित्य पर विशेष कार्य किया। उनका एकप्रसिद्ध प्रबन्धUeberdieheiligenschriftender Jaina ("ontheHolyscriptures ofthe Jains")है। इन्होंने इसमें श्वेताम्बर जैन आगमोंपर विमर्श किया है। "Catalogue of the manuscripts of the Royal Prussian Library" के पांचवें वोल्यूम में वेबर ने हस्तलिखित प्रतियों का विस्तार से वर्णन किया है। वेबर ने भगवती सूत्र पर भी एक विस्तृत प्रबन्धप्रकाशित किया ।जिसकानाम Ueberein Fragment derBhagavati,einBeitrag Zurkenntnis derheiligen sprache und Literatur der Jaina("On a fragmentofthe Bhagavati, a contribution to the Knowledge ofthe holy language and literature ofthe Jains".)है। ई. ल्यूमन ल्यूमन ने जैन आगमों में प्राप्त कतिपय कथानकों का भाषा शास्त्रीय दृष्टिकोण से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy