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उपर्युक्त विवेचन से परिलक्षित होता है संसार की आदि में देव अथवा ब्रह्मा ने संसार का सर्जन किया, उसके बाद वह स्वत: आगे-से-आगे विस्तृत होता गया । संसार के प्रारम्भिक प्रवर्तन में उनकी सक्रिय भागीदारी रहती है। बाद में उस सक्रियता में न्यूनता आ जाती है। ईश्वरकृत सृष्टि
'ईश्वर ने सृष्टि का निर्माण किया' - यह दर्शन जगत् की बहुप्रचलित मान्यता है। सूत्रकृतांग में भी इस मान्यता का उल्लेख हुआ है 'ईसरेण कडे लोए' ।' जीव- अजीव से युक्त तथा सुख-दुःख से समन्वित यह लोक ईश्वरकृत है ।' ईश्वर सम्बन्धी उपर्युक्त अवधारणा नैयायिक दर्शन सम्बन्धी परिलक्षित होती है। नैयायिक दर्शन के अनुसार ईश्वर सृष्टि का निमित्त कारण है । उपादान कारण आत्मा एवं परमाणु है। ईश्वर उपादान कारण नहीं है। यद्यपि वेदान्त दर्शन में भी ईश्वर की अवधारणा है। सगुण ब्रह्म को ही वहां ईश्वर कहा गया है। सृष्टि मायोपहित सगुण ब्रह्म की रचना है।' वहां ईश्वर उपादान कारण है। जीव- अजीव आदि का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है वस्तुत: ईश्वर की भी कोई स्वतन्त्र सत्ता वेदान्त में मान्य नहीं है। वास्तविक सत् तो ब्रह्म ही है । माया के कारण ही जगत् दिखाई दे रहा है। प्रकृति को माया एवं ईश्वर को मायावी कहा गया है।' नैयायिक दर्शन में ईश्वर का स्वतन्त्र अस्तित्व है जबकि वेदान्त के अनुसार ईश्वर भी भ्रमरूप है अत: उसके द्वारा कृत सृष्टि भी भ्रममात्र है । सूत्रकृतांग में वेदान्त के ईश्वर की चर्चा नहीं है ।
प्रधानकृत सृष्टि
सांख्य दर्शन के अनुसार मूल तत्त्व दो हैं - चेतन और अचेतन । ये दोनों अनादि और स्वतन्त्र है । ' चेतन अचेतन में परस्पर अत्यन्ताभाव है। सांख्यदर्शन सत्कार्यवादी है ।' प्रधान से ही सृष्टि का विस्तार होता है, सूत्रकृतांग में सृष्टि के प्रकरण में 'प्रधानकृत' सृष्टि की अवधारणा का उल्लेख है । '
प्रधान का एक नाम प्रकृति है । वह त्रिगुणात्मिका है।' सत्त्व, रज और तमस् - ये तीन गुण हैं । सांख्य दर्शन के अनुसार पुरुष, अपरिणामी एवं उदासीन है ।" वह सृष्टि का निर्माण नहीं करता। उसके अनुसार सृष्टि प्रधान / प्रकृति कृत है ।
1. सूयगडो, 1 / 1 /65
2.
वही, 1 / 1 /65
3.
अन्ययोगव्यच्छेदिका, श्लोक 6
4.
वेदान्तसार, (ले. श्री सदानन्द, वाराणसी, 1990 ) पृ. 18, एतदुपहितं चैतन्यं.. 5. श्वेताश्वतर, 4 / 10, मायां तु प्रकृतिं विद्यान् मायिनं तु महेश्वरम् ।
6.
7.
8. सूयगडो, 1 / 1 /65, पहाणाइ तहावरे ।
9.
सांख्यकारिका, 11 10. वही, 20
जैन आगम में दर्शन
सांख्यकारिका, 3
वही, कारिका 9
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. जगत्कारणमीश्वरः इति ।
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