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जैन आगम में दर्शन
1. मांस, शोणित के उपचय से। 2. मोहनीय कर्म के उदय से। 3. मैथुन की बात सुनने से उत्पन्न मति के कारण एवं 4. मैथुन का सतत चिंतन करते रहने से।
काम वासना के उदय का सम्बन्ध वीर्य के उपचय से और वीर्य के उपचय का सम्बन्ध आहार से है। आगम-साहित्य में काम-वासना पर विजय पाने के उपायों का वर्णन हुआ है। जो निम्न हैं
1. मुनि निर्बल भोजन करे अर्थात् उड़द, छाछ आदि का भोजन करे। 2. कम खाए। 3. ऊर्ध्वस्थान (मुख्यत: सर्वांगासन) कर कायोत्सर्ग करे। 4. ग्रामानुग्राम विहरण करे। 5. आहार का विच्छेद (अनशन) करे।' 6. मांस और रक्त का अपचय करे।'
आचारांग भाष्य में इन उपायों का विस्तार से वर्णन हुआ है-"ऊर्ध्वस्थान की अवस्था में दोनों नेत्रों को नासाग्र या भृकुटि पर स्थिर करे अथवा बार-बार उन पर स्थिर करे। इस क्रिया से अपानवायु दुर्बल होती है और प्राणवायु प्रबल । अपानवायु की प्रबलता से कामांग सक्रिय होता है और प्राणवायु की प्रबलता से वह निष्क्रिय हो जाता है।"
___ अपने इष्टमंत्रपूर्वक समवृत्तिश्वासप्रेक्षा की पच्चीस आवृत्तियां करने से भी काम-वासना उपशांत होती है।
जैसे द्वेषात्मक प्रकृति वाले मनुष्य का बैठे रहना हितकारी होता है, वैसे ही रागात्मक प्रकृति वाले मनुष्य का खड़े रहना या गमन करना हितावह होता है। इसलिए ग्रामानुग्राम विहरण करना ब्रह्मचर्य का उपाय है । ब्रह्मचर्य की साधना से सम्बन्धित उपर्युक्त विवेचन आचारांग भाष्य में उपलब्ध है। जिसका यहां संग्रहण किया गया है।'
अनुप्रेक्षा/अनुचिंतन के प्रयोग भी ब्रह्मचर्य की साधना के लिए महत्त्वपूर्ण है। दशवैकालिक में कहा गया-“समदृष्टि पूर्वक विचरते हुए भी यदि कदाचित् मन संयम से बाहर निकल जाए तो यह विचार करे कि 'वह मेरी नहीं है और न ही मैं उसका हूं, मुमुक्षु उसके प्रति होने वाले विषय-राग को दूर करे। ऐसे ही अन्य उपायों का भी वर्णन उपलब्ध होता है। 1. आयारो, 5/79-83 2. वही, 4/4 3, विगिंच मंससोणियं । 3. आचारांगभाष्यम्, पृ. 273 4. दसवेआलियं, 2/4
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