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________________ आचार मीमांसा 5. उपबृंहण सम्यग्दर्शन की पुष्टि करने को उपबृंहण कहा जाता है। वसुनन्दि ने उपबृंहण के स्थान पर 'उपगूहन' शब्द के प्रयोग को स्वीकार किया है।' आचार्य अमृतचन्द्र ने उपगूहन को उपबृंहण का ही एक प्रकार माना है। अपने मृदुता आदि आत्म-२ -गुणों की वृद्धि करना तथा पराए दोषों का निगूहन करना - ये दोनों ही उपबृंहण के अंग हैं । ' 6. स्थिरीकरण धर्म मार्ग या न्याय मार्ग से विचलित हो रहे व्यक्तियों को पुन: उसी मार्ग में स्थिर करना 'स्थिरीकरण' कहलाता है । ' 255 7. वात्सल्य मोक्ष के कारणभूत धर्म, अहिंसा और साधर्मिकों में वत्सलभाव रखना, उनकी यथायोग्य प्रतिपत्ति रखना, साधर्मिक साधुओं को आहार, वस्त्र आदि देना, गुरु, ग्लान, तपस्वी, शैक्ष, अतिथि साधुओं की विशेष सेवा करना वात्सल्य कहलाता है। 1 8. प्रभावना तीर्थ की उन्नति हो वैसी चेष्टा करना, रत्नत्रयी से अपनी आत्मा को प्रभावित करना तथा जिनशासन की महिमा बढ़ाना प्रभावना नाम के दर्शन का आठवां आचार है । ' आठ प्रकार के व्यक्ति प्रभावक माने जाते हैं 1. प्रवचनी - द्वादशांगीधर, युगप्रधान आगमपुरुष । 2. धर्मकथी - धर्मकथा - कुशल । 3. वादी - वाद - विद्या में निपुण । 4. नैमित्तिक-निमित्तविद् । 5. तपस्वी तपस्या करने वाले । 6. 7. 8. 1. वसुनंदि श्रावकाचार, (ले. आचार्य वसुनन्दि, बनारस, 1952 ) गाथा 48, णिस्संका... 2. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 27, धर्मोऽभिवर्धनीयः, सदात्मनो मार्दवादिभावनया । परदोषनिगूहनमपि विधेयमुपबृंहणगुणार्थम् ॥ विद्याधर- प्रज्ञप्ति आदि विद्याओं के पारगामी । सिद्ध-सिद्धि प्राप्त । कवि कवित्व शक्ति सम्पन्न । " Jain Education International 3. रत्नकरण्डक श्रावकाचार, 1 / 16, दर्शनाच्चरणाद्वापि, चलतां धर्मवत्सलैः । प्रत्यवस्थापनं प्राज्ञैः स्थितिकरणमुच्यते ॥ 4. उत्तराध्ययन, बृहद्वृत्ति, पत्र 567, वत्सलभावो वात्सल्यं साधर्मिकजनस्य भक्तपानादिनोचितप्रतिपत्तिकरणम् । 5. वही, पत्र 567 प्रभावना च तथा तथा स्वतीर्थोन्नतिहेतुचेष्टासु प्रवर्त्तनात्मिका । 6. योगशास्त्र, 2 / 16 वृत्ति, पत्र 65, पावयणी धम्मकही वाई नेमित्तिओ तवस्सी य । विज्जा सिद्धो अ कई अट्टेव पभावगा भणिया || For Private & Personal Use Only उवगूहण । www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
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