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जैन आगम में दर्शन
स्थिति बंधन परिणाम, ऊर्ध्व गौरव परिणाम, अधो गौरव परिणाम, तिर्यक् गौरव परिणाम, दीर्घ गौरव परिणाम एवं ह्रस्व गौरव परिणाम ।' स्थानांग के वृत्तिकार ने परिणाम के तीन अर्थ किए हैं - स्वभाव, शक्ति और धर्म | 2
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अगले जीवन के आयुष्य का निर्धारण होता है तब उसके साथ ही जीव किस गति में जाएगा ? वहां उसकी स्थिति कितनी होगी? वह ऊंचा, नीचा, तिरछा कहां जाएगा ? वह दूरवर्ती क्षेत्र में जाएगा या निकटवर्ती क्षेत्र में इत्यादि बातों का भी निर्धारण हो जाता है ।
आयुष्य कर्म के नौ परिणामों के द्वारा भी पुनर्जन्म के साथ इस कर्म का मुख्य सम्बन्ध है, यह स्पष्ट हो जाता है
1. गति परिणाम - इसके माध्यम से जीव मनुष्य आदि गति को प्राप्त करता है। 2. गतिबन्धन परिणाम - इसके माध्यम से जीव प्रतिनियत गतिकर्म का बंध करता है, जैसे- जीव नरकायु स्वभाव से मनुष्यगति, तिर्यक्गति नामकर्म का बंध करता है, देवगति और नरकगति का बंध नहीं करता ।
3. स्थिति परिणाम - इसके माध्यम से जीव भव सम्बंधी स्थिति (अन्तर्मुहुर्त से तेंतीस सागर तक) का बन्ध करता है ।
4. स्थिति बंधन परिणाम - इसके माध्यम से जीव वर्तमान आयु के परिणाम से भावी आयुष्य की नियत स्थिति का बन्ध करता है, जैसे- तिर्यग् आयुपरिणाम से देव आयुष्य का उत्कृष्ट बंध अठारह सागर का होता है।
5. ऊर्ध्वगौरव परिणाम - गौरव का अर्थ है गमन । इसके माध्यम से जीव ऊर्ध्वगमन करता है ।
6. अधोगौरव परिणाम - इसके माध्यम से जीव अधोगमन करता है।
7. तिर्यग् गौरव परिणाम- इसके माध्यम से जीव को तिर्यग् गमन की शक्ति प्राप्त होती है ।
8. दीर्घ गौरव परिणाम - इसके माध्यम से जीव लोक से लोकान्त पर्यन्त दीर्घगमन करता है ।
9. ह्रस्व गौरव परिणाम - इसके माध्यम से जीव ह्रस्व गमन (थोड़ा गमन ) करता है ।
आयुष्य कर्म के पुद्गल परमाणु जीव में ऊंची-नीची, तिरछी-लम्बी और छोटी-बड़ी गति करने की शक्ति उत्पन्न करते हैं ।
1.
ठाणं 9/40
2. स्थानांगवृत्ति, पत्र 453 परिणाम: -स्वभावः शक्तिः धर्म इति ।
3.
ठाणं टिप्पण, 9/40, पृ. 882
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