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जैन आगम में दर्शन
जब एक भव को छोड़कर दूसरे भव में जाती है तब अपने साथ क्या ले जा सकती और क्या नहीं ले जा सकती है?
इसी संदर्भ में गौतम ने भगवान् से पूछा-भन्ते ! क्या (कोई) ज्ञान इस जन्म तक ही सीमित रहता है? क्या ज्ञान अगले जन्म में साथ जाता है ? क्या ज्ञान वर्तमान तथा भावी जन्म दोनों में विद्यमान रहता है ? गौतम को समाहित करते हुए महावीर ने कहा- गौतम ! (कोई) ज्ञान इस जन्म तक भी सीमित रहता है, अगले जन्म में भी साथ जाता है, वर्तमान जन्म और भावी जन्म-दोनों में भी विद्यमान रहता है। गौतम ने इसी प्रकार दर्शन, चारित्र, तप और संयम के संदर्भ में भी यही प्रश्न उपस्थित किए। भगवान् ने इन प्रश्नों के समाधान में कहा- ज्ञान और दर्शन (सम्यक्त्व)-ये दोनों इस जन्म तक ही सीमित रह सकते हैं और अगले जन्म में भी जा सकते हैं किन्तु चारित्र, तप और संयम-इन तीनों का भवान्तर गमन नहीं होता। ये एहभविक ही होते हैं। आत्मा के साथ नहीं जाते।' आचार्य महाप्रज्ञ ने इस संदर्भ में अपना विमर्श प्रस्तुत करते हुए लिखा है- “एक जन्म से दूसरे जन्म के मध्य में ज्ञान सत्तारूप में रहता है, अभिव्यक्त नहीं होता। वह शरीर रचना के पश्चात् नाड़ीतंत्र की रचना के बाद अभिव्यक्त होता है। उदाहरण के लिए जाति-स्मृति (पूर्वजन्म की स्मृति) को लिया जा सकता है। इन्द्रिय और मन से होने वाले ज्ञान का आधारभूत कोश कर्म-शरीर है। स्थूल शरीर के नाड़ीतंत्र या मस्तिष्क में उनके संवादी कोशों की रचना होती है।
जिस आत्मा में दो इन्द्रियों के विकास की सत्ता है, उसके दो इन्द्रियों की रचना होगी। इसी प्रकार तीन, चार और पांच इन्द्रियों की रचना भी सूक्ष्म शरीर के कोशों के आधार पर ही होगी। नाड़ीतंत्र या मस्तिष्क में ज्ञानकोशों की रचना की तरतमता का आधार भी कर्मशरीरगत कोश ही बनते हैं। इसे सूत्र के रूप में इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है-जिस आत्मा के ज्ञानावरण कर्म का जितना क्षयोपशम होता है, उसके उतने ही कोश कर्म-शरीर में निर्मित हो जाते हैं और उसके संवादी कोश नाड़ीतंत्र या मस्तिष्क में निर्मित होते हैं। इस सारे दार्शनिक चिंतन को ध्यान में रखते हुए भगवान् ने कहा- 'ज्ञान परभविक भी होता है।'
जैसे हमारे मस्तिष्क में वर्तमान जन्म के स्मृति कोश होते हैं वैसे ही पूर्वजन्म के स्मृतिकोश होते हैं या नहीं, यह एक जटिल प्रश्न है। आज के शरीर शास्त्री और मनोवैज्ञानिक उनकोशों को खोज नहीं पाए हैं किंतुकर्मशास्त्रीय दृष्टि से जिसमें पूर्वजन्म की स्मृति की संभावना है, उसमें उन कोशों की विद्यमानता की सम्भावना भी की जा सकती है। मस्तिष्क का बहुत बड़ा भाग मौन क्षेत्र (Silent area) या अन्धकार क्षेत्र (Dark area) है। हो सकता है उस क्षेत्र में वे स्मृतिकोश उपलब्ध हो जाए।'
1. अंगसुत्ताणि 2, भगवई 1/39-43 2. भगवई (खण्ड-I) 1/39-43 का भाष्य
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