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जैन आगम में दर्शन
आचारांग-भाष्य में पूर्वजन्म की स्मृति के तीन कारणों की मीमांसा हुई है।1. मोहनीय कर्म का उपशम, 2. अध्यवसान शुद्धि (लेश्या विशुद्धि), 3. ईहापोहमार्गणागवेषणाकरण।
1.उपशान्त मोहनीय-मोहनीय कर्म के विशिष्ट प्रकार के उपशम से भी जाति-स्मृति पैदा हो सकती है। उत्तराध्ययन के 'नमिपव्वज्जा' अध्ययन में ऐसा उल्लेख मिलता है
उवसंतमोहणिज्जो, सरईपोराणियंजाइं। उसकामोह उपशांतथा जिससे उसे पूर्वजन्म की स्मृति हो गई।
2. अध्यवसान शुद्धि-मृगापुत्रने साधु को देखकर जाति-स्मृति प्राप्त की। इस प्रसंग में मोहनीय के उपशम और अध्यवसान-शुद्धि का एक साथ उल्लेख है
साहुस्स दरिसणे तस्स, अज्झवसाणम्मि सोहणे। मोहंगयस्स संतस्स, जाईसरणं समुप्पन्नं ।। उत्तरा. 19/7 साधु के दर्शन और अध्यवसाय पवित्र होने पर 'मैंने ऐसा कहीं देखा है' - इस विषय में (मृगापुत्र) सम्मोहित हो गया, चित्तवृत्ति सघनरूप में एकाग्र हो गई और विकल्प शान्त हो गए। इस अवस्था में उसे पूर्वजन्म की स्मृति हो आई।
3. ईहा-अपोह-मार्गणा-गवेषणा-ईहा, अपोह, मार्गणा एवं गवेषणा--ये चार पद 'जातिस्मृति' की प्रक्रिया को प्रकट करते हैं। आचारांग भाष्य में इस विवेचना के प्रसंग में मेघकुमार का उदाहरण प्रस्तुत किया है
"जैसे ही मेघकुमार ने मेरुप्रभ हाथी का नाम सुना, वहां उसकी ईहा (पूर्वस्मृति के लिए प्रारम्भिकमानसिकचेष्टा) प्रवृत्त हुई। उस हाथी को जानने के लिए चित्त में कुछ आन्दोलन शुरु हुआ। उसके बाद अपोह हुआ–'क्या मैं हाथी था? यह तर्कणा (मीमांसा) करते हुए वह मार्गणा में प्रविष्ट हुआ। अपने अतीत का अन्वेषण करने के लिए वह अपने द्वारा अनुभूत अतीत की सीमा में प्रवेश कर गया। अतीत का चिंतन करते-करते उसने गवेषणा प्रारम्भ की। जैसे आहार की अन्वेषणा में प्रवृत्त गाय पूर्व प्राप्त आहार के स्थान को प्राप्त कर लेती है वैसे ही गवेषणा करते हुए मेघकुमार को एकाग्र-अध्यवसाय से हाथी के रूप में अपने जन्म की स्मृति उपलब्ध हो गई।
सुश्रुत संहिता में कहा गया है कि पूर्वजन्म में शास्त्राभ्यास के द्वारा भावित अन्त:करण वाले मनुष्य को पूर्वजन्म की स्मृति हो जाती है
भावित: पूर्वदहेषु सततं शास्त्रबुद्धयः । भवन्ति सत्त्वभूयिष्ठा: पूर्वजातिस्मरा नराः।
सुश्रुत संहिता, शारीरस्थान 2/57 1. आचारांग भाष्यम् सूत्र 1/1-4 पृ. 21 2. वही, पृ. 22
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