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________________ कर्ममीमांसा 235 जाति-स्मृति की उभयरूपता जाति स्मरण ज्ञान दो प्रकार का होता है-सनिमित्तक और अनिमित्तक । कुछ मनुष्यों कोतदावरणीय (जातिस्मृति को आवृत्त करने वाले) कर्मों का क्षयोपशम होने से जाति-स्मरण ज्ञान होता है, वह अनिमित्तक है। बाह्य निमित्तों से उपलब्ध होने वाला जाति-स्मरण ज्ञान सनिमित्तक है। पुनर्जन्मके हेतु आचारांग ने माया और प्रमाद को पुनर्भव का हेतु माना है। मायावी एवं प्रमादी व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र का विच्छेद नहीं कर सकता। जिस पुरुष का चित्त विषय और कषाय से संस्कारित है, उसे मायावी कहा जाता है। मायावी व्यक्ति के परिणामों की शुद्धि नहीं होती। प्रमादी पुरुष उचित आचरण नहीं कर सकता। इसलिए वह बार-बार जन्म ग्रहण करता है। मोह को भी पुनर्जन्म का कारण माना जाता है। मोह से मूढ मनुष्य बार-बार जन्म-मरण को प्राप्त होता है। आत्मा का अस्तित्व जन्म-मरण का हेतु नहीं है। जन्म-मरण का हेतु मोह है।' मोह, माया, प्रमाद के कारण जीव के जन्म-मरण का चक्र चलता रहता है। ___ भारतीय चिन्तन के अनुसार कर्म पुनर्जन्म का मूल है। राग और द्वेष कर्म के मूल हैं।' भावकर्म से द्रव्यकर्म, द्रव्यकर्म से भाव कर्म का प्रादुर्भाव होता रहता है। अनिगृहीत क्रोध, मान, माया एवं लोभ आदि कषाय पुनर्जन्म के मूल को सिंचन देते हैं कोहो य माणो य अणिग्गहीया, माया य लोभो य पवड्डमाणा। चत्तारि एए कसिणा कसाया, सिंचंति मूलाइं पुणब्भवस्स।' कर्म का नाश हुए बिना पुनर्जन्म की श्रृंखला समाप्त नहीं हो सकती। कारण कर्म है। अत: कर्म का नाश आवश्यक है। आचारांग आदि शास्त्र बार-बार कर्म शरीर को नष्ट करने का निर्देश देते हैं 'मुणी मोणं समादाय, धुणे कम्मसरीरगं'' कर्म एवं पुनर्जन्म का परस्पर सघन सम्बन्ध है। अध्यात्म का सर्वोच्च लक्ष्य है-दु:ख मुक्ति एवं स्वभावप्राप्ति । उसकी उपलब्धि जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने से ही मिल सकती है। उस मुक्ति की प्राप्ति कर्म के सर्वथा नाश से ही संभव है। 1. आचारांग भाष्य सूत्र 1-4, पृ. 22 2. आयारो 3/14, माई पमाई पुणरेइ गभं। 3. वही, 5/7 मोहेण गब्भं मरणाति एति । उत्तरज्झयणाणि 32/7 5. दसवेआलियं 8/39 6. आयारो 2/163 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
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