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जैन आगम में दर्शन
परामनोविज्ञान एवं पुर्नजन्म
परा-मनोविज्ञान के क्षेत्र में पुर्नजन्म पर बहुत अन्वेषण हो रहा है। परा-मनोविज्ञान विज्ञान की ही एक शाखा है। इसमें पुनर्जन्म आदि सिद्धान्तों का अन्वेषण निरन्तर गतिशील है। योरोपएवं अमेरिका जैसे नितान्त आधुनिक एवं मशीनी देशपुनर्जन्म का आधार खोजने में लगे हैं। वर्जीनिया विश्वविद्यालय के परा-मनोविज्ञान विभागके अध्यक्ष डॉ.ईआनस्टीवेन्सन ने पूर्वजन्म की स्मृति सम्बन्धी अनेक तथ्यों का आकलन किया है। अपनी अनवरत शोध के पश्चात् अपना स्पष्ट मत प्रस्तुत करते हुए कहा है कि पुनर्जन्म सम्बन्धी अवधारणा यथार्थ है। पुनर्जन्म का आधार
दार्शनिक दृष्टि का मूल आधार पुनर्जन्मवाद है एवं पुनर्जन्मवाद के चार स्तम्भ हैं
1. आत्मवाद, 2. लोकवाद, 3. कर्मवाद एवं, 4. क्रियावाद । भगवान् महावीर आत्मवादी थे। उन्होंने अनुभव तथा साक्षात्कार को प्रधानता दी । वे जानते थे कि तर्क के द्वारा स्थापित पक्ष प्रतितर्क से निराकृत हो जाता है, किन्तु साक्षात्कार किया हुआ तत्त्व सैंकड़ों तर्कों से भी खण्डित नहीं होता। इसलिए भगवान् ने साक्षात्कार के मार्ग को मुख्यता दी। जिसको पूर्वजन्म की स्मृति हो जाती है, वह वस्तुवृत्त्या आत्मवादी होता है। उसको आत्मा के अस्तित्व में शंका नहीं रहती। आत्मा के त्रैकालिक अस्तित्व की स्वीकृति होने पर लोकवाद, कर्मवाद एवं क्रियावाद का स्वीकार होना स्वाभाविक है।
__ 'जैसे मैं हूं' इसी तरह अन्य प्राणी भी हैं। लोक के भीतर ही जीवों का अस्तित्व है। जीव, अजीव लोकसमुदाय है। इस प्रकार मानने वाले कोलोकवादी कहा जाता है। आत्मवादी लोकवादी भी होगा। जाति-स्मृति से आत्मा और पुद्गल के सम्बन्ध का भी ज्ञान होता है। आत्मा का पुद्गल (कर्म) के योग से ही दिशा-अनुदिशाओं में संचरण होता है। पुद्गल (कर्म) स्वयं आत्मा के द्वारा आकृष्ट किए हुए हैं। 'अपना किया हुआ कर्म अपने को ही भुगतना होता है'- यह कर्मवाद की स्वीकृति है- आत्मा और कर्म का सम्बन्ध क्रिया के द्वारा ही होता है। जब तक आत्मा में राग-द्वेष जनित प्रकम्पन विद्यमान हैं, तब तक उसका कर्म परमाणुओं के साथ सम्बन्ध होता रहता है। इसलिए कर्मवाद, क्रियावाद का उपजीवी है।' जाति स्मृति से इन तथ्यों का साक्षात्कार हो जाता है। व्यक्ति सच्चाई को आत्मसात् कर लेता है। तब उसका आचरण सम्यक् हो जाता है।
1. मंगलप्रज्ञा, समणी, आर्हती दृष्टि (चूरू, 1998) पृ.- 38-42 2. आयारो 1/5 से आयावाई, लोगावाई, कम्मावाई, किरियावाई 3. आचारांगभाष्य पृ. 24-25
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