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________________ कर्ममीमांसा पाश्चात्य विचारकों की दृष्टि में पुनर्जन्म पाश्चात्य दार्शनिकों ने भी पुनर्जन्म के बारे में विचार किया है। प्राचीन यूनान के महान दार्शनिक पाइथागोरस के अनुसार साधुत्व की अनुपालना से आत्मा का जन्म उच्चतर लोक में होता है और दुष्ट आत्माएं निम्न योनियों में जाती है । 231 सुकरात का मन्तव्य था कि मृत्यु स्वप्नविहीन निद्रा और पुनर्जन्म जागृत लोक के दर्शन का द्वार है। प्लेटो ने भी पुनर्जन्म के सिद्धान्त को स्वीकार किया है। प्लेटो के शब्दों में -The soul always wears her garment a new. The soul has a natural strength which willholdout and be born many times. दार्शनिक शोपनहार के शब्दों में पुनर्जन्म एक असंदिग्ध तत्त्व है । विज्ञान जगत में पुनर्जन्म की अवधारणा दार्शनिक जगत में पुनर्जन्म चर्चा का विषय रहा ही है, आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में भी उस पर विमर्श हो रहा है। सामान्यतः पदार्थ की ठोस, द्रव, गैस एवं प्लाज्मा ये चार अवस्थाएं होती है । सोवियत रूस के वैज्ञानिक श्री वी.एस. ग्रिश्चेंको ने पदार्थ की पांचवी अवस्था की खोज की है, जो जैव- प्लाज्मा (प्रोटोप्लाज्मा, बायोप्लाज्मा) कहलाती है । ग्रिश्चेंको के अनुसार जैव - प्लाज्मा में स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन और प्रोटोन होते हैं जिनका नाभिक से कोई सम्बन्ध नहीं होता। इनकी गति बहुत तीव्र होती है। यह मानव की सुषुम्ना नाड़ी में एकत्रित रहता है। प्रोटोप्लाज्मा से सम्बन्धित अनेकों तथ्य इन्होंने प्रस्तुत किए हैं। प्रोटोप्लाज्मा से सम्बन्धित निष्कर्षों के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत में प्रचलित सूक्ष्म शरीर की अवधारणा जैव- प्लाज्मा से बहुत साम्य है। प्रोटो प्लाज्मा की तुलना प्राण तत्त्व से की जा सकती है । वैज्ञानिकों के अनुसार प्रोटो-प्लाज्मा शरीर की कोशिकाओं में रहता है। मरने के बाद यह तत्त्व शरीर से अलग हो जाता है। वही तत्त्व जीन में परिवर्तित हो जाता है। बच्चा जब जन्म लेता है, तब बायोप्लाज्मा पुनः जन्म ले लेता है। शरीर जल जाता है, प्रोटोप्लाज्मा नहीं जलता यह आकाश में व्याप्त हो जाता है। जैन दृष्टि के अनुसार इसे सूक्ष्म शरीर कहा जा सकता है। सूक्ष्म शरीर चतुःस्पर्शी होने से द्रव, गैस, ठोस आदि रूप नहीं होता। यह सूक्ष्म होता है। सूक्ष्म शरीर के संसर्ग से युक्त आत्मा ही पुनर्जन्म लेती है । प्रोटोप्लाज्मा की अवधारणा से आत्मा की अमरता एवं पुनर्जन्म ये दोनों ही सिद्धान्त स्पष्ट होते हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार जब प्रोटो-प्लाज्मा का कण स्मृति पटल पर जागृत हो जाता है तब शिशु को अपने पूर्वजन्म की घटनाएं याद आने लगती है। जैन दर्शन के अनुसार पूर्वजन्म की स्मृति सूक्ष्म शरीर में संचित रहती है और निमित्त प्राप्त कर उद्भूत हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
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