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कर्ममीमांसा
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पुनर्जन्म भारतीय चिन्तन का सर्वमान्य सिद्धान्त रहा है। सभी चिन्तकों ने इस सिद्धान्त की पुष्टि में अपने प्रज्ञा बल का समायोजन किया है। भारतीय दृष्टि से पुनर्जन्म का मूल कारण कर्म है। और कर्म के कारण ही जन्म-मरण होता है-'रागोयदोसोविय कम्मबीयं, कम्मं च जाइमरणं वयन्ति।' अविद्या, वासना, अदृष्ट आदि कर्म के ही पर्यायवाची शब्द हैं। विभिन्न भारतीय दर्शनों में पुनर्जन्म
उपनिषद् दर्शनने पुनर्जन्म को स्वीकृति दी है। उपनिषद् का घोष है - 'सस्यमिवपच्यते मृत्यः, सस्यमिव जायते पुनः' डॉ. राधाकृष्णन सर्वपल्ली ने कहा—'पुनर्जन्म में विश्वास कमसे कम उपनिषदों के काल से चला आ रहा है। वेदों और ब्राह्मणों के काल का यह स्वाभाविक विकास है और इसे उपनिषदों में स्पष्ट अभिव्यक्ति मिली है।' वेदान्त दर्शन के प्रमुख आचार्य निम्बार्क ने पुनर्जन्म एवं उसके कारणों को स्पष्ट करते हुए कहा है कि आत्मा अजर, अमर एवं अविनाशी है। जब तक जीव अविद्या से आवृत्त है। तब तक जन्म मरण का चक्र चलता रहता है। अविद्या निवृत्ति के पश्चात् पुनर्जन्म का अभाव हो जाता है। सांख्य योग दर्शन
__ सांख्य दार्शनिकों के अनुसार आत्मा को अपने पूर्वकृत कर्म के फलस्वरूप दुःख के उपभोग हेतु बार-बार शरीर धारणा करना पड़ता है। 'आत्मनो भोगायतनशरीरं' शरीर भोग का आयतन है। लिङ्ग शरीर के द्वारा आत्मा एक भव से दूरे भव में जाकर शरीर धारणा करती रहती है। जब तक विवेक ख्याति नहीं होती तब तक यह चक्र चलता रहता है। पातञ्जल योग भाष्य में भी कहा है कि - 'सति मूले तद् विपाको जात्यायुर्भोगः । जब तक क्लेश रहते हैं तब तक जाति, आयु एवं भोग के रूप में उनके विपाक को भोगना पड़ता है। न्याय-वैशेषिक
ये भी आत्मा को त्रिकालवर्ती मानते हैं। आत्मा के नित्य होने जन्मान्तर की सिद्धि होती है। पूर्वकृत कर्मभोग के लिए आत्माको पुनर्जन्मकरनापड़ताहै-'पूर्वकृतफलानुभवनात् तदुत्पत्तिः।'अदृष्ट के कारण जीव संसार में परिभ्रमण करता रहता है। मीमांसा
यज्ञ आदि कर्मकाण्ड में विश्वास करने वाला मीमांसा दर्शन भी पुनर्जन्म को स्वीकार करता है। आत्मा, परलोक आदि में उसका विश्वास है । यज्ञ से अदृष्ट नाम का तत्त्व पैदा होता है और वह सम्पूर्ण जीवन व्यवस्था का नियामक होता है। गीता
गीता को सब उपनिषदों का सार कहा गया है। भारतीय संस्कृति का गीता महिमामण्डित ग्रन्थ है। उसमें पुनर्जन्म का तत्व स्पष्ट रूप से प्रतिपादित हुआ है। ग्रन्थकार कहते हैं
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