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________________ 228 जैन आगम में दर्शन होते हैं। बादर पुद्गल स्कन्ध अष्टस्पर्शी होते हैं। ऐन्द्रियिक ज्ञान के विषय बादर पुद्गल स्कन्ध ही बन सकते हैं। कर्म-परमाणु इन्द्रिय-स्तर पर ग्राह्य नहीं है। विशिष्ट अतीन्द्रिय ज्ञान से तो इनका अवबोध सम्भव है। कदाचित् विज्ञान के विशिष्ट उपकरणों के भी यह दृश्य बन सकते हैं, यह सम्भावना की जा सकती है। कर्म एवं पुनर्जन्म दार्शनिक जगत् में आत्मवाद एवं पुनर्जन्म के संदर्भ में कुछ मान्यताएं प्रचलित हैं1. आत्मा है पुनर्जन्म नहीं है। 2. पुनर्जन्म है आत्मा नहीं है। 3. आत्मा एवं पुनर्जन्म दोनों ही नहीं हैं। 4. आत्मा एवं पुनर्जन्म दोनों ही हैं। ईसाई एवं इस्लाम धर्म आत्मा की सत्ता को तो स्वीकार करते हैं किन्तु क्रमिक पुनर्जन्म की सत्ता स्वीकार नहीं करते। बौद्धदर्शन अनात्मवादी है, फिर भी वह कर्मवाद एवं पुनर्जन्मवाद के सिद्धान्तको चित्तसंतति के आधार पर स्वीकार करता है | चार्वाक दर्शन, आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म आदि किसी भी अतीन्द्रिय पदार्थ की सत्ता को स्वीकार नहीं करता है। अन्य भारतीय दर्शन आत्मा, परमात्मा एवं पुनर्जन्म इन तीनों की सत्ता स्वीकार करते हैं। इन दर्शनों ने आत्मा की त्रैकालिक सत्ता को स्वीकार किया है। यद्यपि आत्म स्वरूप के सम्बन्ध में उनमें परस्पर मतैक्य नहीं है किंतु आत्मा की त्रैकालिक स्वीकृति वे सब एक स्वर से करते हैं। आचारांग में कहा गया- “जस्स नत्थि पुरा पच्छा, मज्झो तस्स कओ सिआ"। जिसका पूर्व एवं पश्चात् नहीं होता उसका मध्य भी कैसे होगा? आगमकार तत्त्वप्रतिपादन में युक्ति का अवलम्बन प्राय: नहीं लेते हैं। किंतु आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि में आचारांगकर्ता इस महत्त्वपूर्ण तर्क का आश्रय ले रहे हैं। आत्मा वर्तमान में है, इससे स्पष्ट होता है कि आत्मा का पूर्व में अस्तित्व था तथा भविष्य में उसका अस्तित्व रहेगा। आत्मा की त्रैकालिक सत्ता की स्वीकृति पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्त की स्पष्ट अभिव्यक्ति है। ___ दर्शन का प्रादुर्भाव पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म सम्बन्धी विचारणा से होता है। आचारांगसूत्र के प्रारम्भ में ही यह जिज्ञासा है - 'अत्थि मे आया ओववाइए, णत्थि मे आया ओववाइए? मेरी आत्मा पुनर्जन्म लेने वाली है या नहीं है। दिशा, विदिशाओं में अनुसंचरण करने वाला कौन है? 'के अहं आसी के वा इओ चुओ इह पेच्चा भविस्सामि' मैं अतीत में कौन था? यहां से च्युत होकर भविष्य में कहाँ जाऊंगा। 'कौन हूं, आया कहां से, और जाना है कहां?' इस प्रकार की जिज्ञासाएं दार्शनिक चिन्तन की पृष्ठभूमि हैं। 1. आयारो 4/46 2. वही 1/1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
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