________________
220
जैन आगम में दर्शन
गई है। कर्म के क्रियाकलापों को द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव आदि परिस्थितियां नियंत्रित करती रहती हैं। कर्मउदय के निमित्तों की विविधता
प्रज्ञापना में कर्म के अनुभाव के संदर्भ में गति, स्थिति, भव, पुद्गल एवंपुद्गल परिणाम इन हेतुओं का उल्लेख हुआ है।' यथा* गति-हेतुक-उदय-नरक गति में असाता का उदय तीव्र हो जाता है। यदि जीव
उस समय अन्य गति में होता है तो इतना तीव्र असाता का उदय नहीं होता। कर्म
उदय की तीव्रता में नरक गति हेतु बन गई है। * स्थिति-हेतुक-उदय-मोहकर्म की सर्वोत्कृष्ट स्थिति में मिथ्यात्व मोह का तीव्र
उदय होता है। यह स्थिति हेतुक विपाक-उदय है। भव-हेतुक-उदय-दर्शनावरणीय कर्म का उदय चारों गतियों के जीवों के होता है। इस कर्म के उदय से नींद आती है किंतु नींद मनुष्य और तिर्यञ्च दो को ही आती है। देव एवं नारक को नींद नहीं आती है, यह भव (जन्म) हेतुक विपाकउदय है। गति, स्थिति एवं भव के निमित्त से कई कर्मों का अपने आप उदय हो जाता है। पुद्गल-हेतुक-उदय-किसी ने पत्थर फेंका, चोट लगी, असाता वेदनीय का उदय हो गया, यह दूसरों के द्वारा किया हुआ असात-वेदनीय का पुद्गल-हेतुक-विपाक उदय है। किसी ने गाली दी, क्रोध आ गया-यह क्रोध वेदनीय पुद्गलों का सहेतुक विपाक
उदय है। * पुद्गल-परिणाम के द्वारा होने वाला उदय-भोजन किया, वह अजीर्ण हो गया।
उससे रोग पैदा हो गया। यह असात वेदनीय का पुद्गल-परिणाम से होने वाला
उदय है। * मदिरा पी, उन्माद छा गया। ज्ञानावरण का उदय हुआ। यह पुद्गल परिणमन
हेतुक-विपाक-उदय है। ऐयापथिकी और साम्परायिकी क्रिया
कर्मबंध दो प्रकार का होता है-ईर्यापथिक और साम्परायिक। केवल काययोग के
1. पण्णवणा 23/13........सयं वा उदिण्णस्स परेण वा उदीरियस्स तदुभएण वा उदीरिजमाणस्य गतिं
पप्प ठितिं पप्प भवं पप्प पोग्गलं पप्प पोग्गलपरिणामं पप्प, 2. महाप्रज्ञ आचार्य, जैन दर्शन मनन और मीमांसा प. 314-315
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org