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जैन आगम में दर्शन
यह ग्रन्थ सात अध्यायों में विभक्त है : 1. विषय-प्रवेश 2. आगम साहित्य की रूपरेखा 3. तत्त्व-मीमांसा, 4. आत्म-मीमांसा, 5. कर्म-मीमांसा, 6. आचार-मीमांसा एवं 7. आगमों में प्राप्त जैनेतर दर्शन
प्रथम अध्याय विषय प्रवेश में हम इन छहों प्रतिपाद्यों की संक्षिप्त रूपरेखा अध्याय क्रम से इस दृष्टि से दे रहे हैं कि हमारे सम्पूर्ण शोध-प्रबन्ध के विषय में पाठक का प्रवेश हो सके। इसीलिए भूमिका को विषय प्रवेश कहा गया है। आगम साहित्य की रूपरेखा
प्रथम अध्याय में आगम साहित्य पर विशद विचार किया गया है। वर्तमान में उपलब्ध जैनागम भगवान् महावीर की वाणी का संकलन है, जो तीर्थंकर महावीर द्वारा अर्थ रूप में कथित एवं उनके विशिष्ट ऋद्धि-बुद्धि सम्पन्न गणधरों द्वारा सूत्र रूप में ग्रथित है । यद्यपि जैन परम्परा में विशिष्ट अर्हता सम्पन्न पुरुष को आगम माना गया है। आगम पुरुष की अनुपस्थिति में उनके वचन, प्रवचन को आगम कहा जाता है। आगमों के उद्भव की अवधारणा की प्रस्तुति के क्रम में हमने इस प्राचीन अवधारणा को रेखांकित किया है। भगवान् महावीर के ग्यारह गणधर थे। यद्यपि वर्तमान में सुधर्मा स्वामी कृत द्वादशांगी के अंश ही उपलब्ध हैं। सुधर्मा जम्बू को सम्बोधित करते हुए कहते हैं – “आयुष्मन्! मैंने सुना है, भगवान् ने यह कहा - 'सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं' आचारांग जैसे प्राचीनतम आगम का प्रारम्भ भी इस वाक्य से हुआ है। आगमों की वाचना, संख्या, भाषा, कर्ता, प्रामाण्य, वर्गीकरण, विच्छेदक्रम आदि विभिन्न विषयों की प्रस्तुति के साथ ही प्रथम पांच अंग आगम, जो हमारे शोध प्रबन्ध के मुख्य आधार हैं, उनका विस्तृत परिचय प्रस्तुत किया गया है। उनमें प्रतिपादित दार्शनिक एवं सामयिक विचारों का वर्णन भी संक्षेप में किया गया है, जिससे पाठक का उस आगम ग्रन्थ की आत्मा से परिचय भी हो सकेगा।
श्वेताम्बर आगम एवं उनके व्याख्या साहित्य के परिचय के साथ ही दिगम्बर परम्परा मान्य आगमों का भी परिचय प्रस्तुत अध्याय में है। इसके साथ ही आधुनिक युग में किए जा रहे आगमों के सम्पादन, अनुवाद आदि के सम्बन्ध में जानकारी भी इस अध्याय में दी गई है। श्वेताम्बर परम्परा का मानना है कि ग्यारह अंग विकल रूप से सुरक्षित हैं तथा दृष्टिवाद नाम का बारहवां अंग सर्वथा लुप्त हो गया है। इसके विपरीत दिगम्बर परम्परा का यह अभिमत है कि बारहवें अंग दृष्टिवाद के कुछ अंशों को छोड़कर अवशिष्ट सारे ही अंगप्रविष्ट
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