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जैन आगम में दर्शन
आत्मा दर्शन जगत् के विचार का मुख्य केन्द्र रहा है। अब विज्ञान भी उस दिशा में प्रस्थान करने का प्रयत्न कर रहा है। वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि मस्तिष्क को संचालित करने वाली कोई अन्यशक्ति है। परामनोविज्ञान एवं मनोविज्ञान तो इस दिशा में पहले से ही गतिशील है। आत्मा की विचारणा स्वअस्तित्व की विचारणा है। जब व्यक्ति अपने स्वाभाविक अस्तित्व के प्रति जागरूक बनता हैतबस्वत: ही अनेक अकरणीय कृत्यों से विमुख होजाताहै। वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय अनेक समस्याओं का समाधान आत्म-विचारणा के परिप्रेक्ष्य में खोजा जा सकता है।
आत्मा अपने मूलरूप में शुद्ध है किंतु संसारावस्था में वह कर्मों के बंधन से बंधी हुई है। कर्म के कारण ही उसका संसार में भ्रमण हो रहा है। अध्यात्म का उद्देश्य है आत्मा के शुद्ध स्वरूप की प्राप्ति । कर्मों के क्षय से ही वह प्राप्त हो सकता है। कर्म क्षय की प्रक्रिया को हस्तगत करने के लिए कर्म का विभिन्न कोणों से अवबोध भी आवश्यक है। आत्मवाद के पश्चात् अब हम अग्रिम अध्याय में कर्मवाद की व्याख्या करेंगे।
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