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________________ कर्ममीमांसा दार्शनिक चिंतन का एक प्रमुख पक्ष है-कारण-कार्य सम्बन्ध का विचार । विज्ञान भी कारण-कार्य सम्बन्ध पर विचार करता है किंतु उसकी सीमा है। विज्ञान प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण को ही काम लेता है। आस्तिक-नास्तिक का शब्दार्थ : कर्मसिद्धान्त का महत्त्व भारतीय चिंतन में दो शब्द बहु-प्रचलित हैं-आस्तिक और नास्तिक । पाणिनी ने इन दो शब्दों की व्युत्पत्ति करते समय यह पक्ष प्रस्तुत किया कि जो दिष्ट अर्थात् कर्म तथा कर्मफल में विश्वास करता है वह आस्तिक है और जो दिष्ट में विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है।' पाणिनी द्वारा दी गई आस्तिक-नास्तिक की व्याख्या से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि केवल आगमगम्य प्रमेयों में कर्म और कर्मफल के सम्बन्ध का सिद्धान्त मुख्य है। भारतीय दर्शनों में अधिकतर दर्शन आगम-प्रामाण्यवादी हैं। चार्वाक के अतिरिक्त सभी दर्शन कर्म और कर्मफल के सम्बन्ध तथा उससे जुड़े हुए पुनर्जन्म के सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं। कर्मसिद्धान्त का आधार : आगम प्रामाण्य दर्शन, विशेषकर भारतीय दर्शन प्रत्यक्ष एवं अनुमान के अतिरिक्त एक तीसरे प्रमाण को भी मान्यता देते हैं। वह प्रमाण है-आगम-प्रमाण । आगम प्रमाण को मान्यता देने के पीछे यह मान्यता काम कर रही है कि कुछ ऐसे प्रमेय भी हैं जो प्रत्यक्ष अथवा अनुमान प्रमाण का विषय नहीं बन पाते। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने प्रमेयों को दो भागों में बांटा है 1. हेतु-गम्य प्रमेय, 2. आगम-गम्य प्रमेय। कर्म और कर्मफल के बीच का सम्बन्ध प्रत्यक्ष अथवा अनुमान गम्य नहीं है। उसे आगमसे ही जाना जा सकता है। इसीलिए प्रकारान्तरसे कर्म और कर्मफल के बीच के सम्बन्ध को मानने का अर्थ हो जाता है-आगम प्रमाण को मानना। भारतीय दर्शन में दो मत प्रचलित हैं- प्रमाण-संप्लव और प्रमाण-व्यवस्था।' प्रमाण 1. अष्टाध्यायीसूत्रपाठ (संपा. पं. ब्रह्मदत्तजिज्ञासु, बहालगढ़, 1989) 4/4/60 अस्तिनास्तिदिष्टं मति: 2. सन्मति प्रकरण (अनु. पं. सुखलाल संघवी, अहमदाबाद, 1932) 3/45 3. न्यायमञ्जरी, (ले. जयन्सभट्ट, मैसूर, 1970), Vol. I, पृ. 87, 88 प्रायेण प्रमाणानि प्रमेयमभिसंप्लवन्ते, क्वचित् व्यवतिष्ठन्ते अपि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
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