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आत्ममीमांसा
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..........जेसिं केसिंचि पाणाणं अभिक्तंपडिक्कंतं, संकुचियं पसारियं रुयंभंतंतसियं पलाइयं आगइगइविन्नाया.......।'
जिन किन्हीं प्राणियों में सामनेजाना, पीछे हटना, संकुचित होना, फैलना, शब्द करना, इधर-उधर जाना, भयभीत होना, दौड़ना-ये क्रियाएं हैं और जो आगति एवं गति के विज्ञाता हैं, वे त्रस हैं। उत्तराध्ययन वृत्ति के अनुसार जो ताप आदि से संतप्त होने पर छाया आदि की ओर गतिशील होते हैं, वे त्रस (द्वीन्द्रिय आदि जीव) हैं।' त्रस और स्थावर
आचारांग के प्रथम शस्त्र परिज्ञा अध्ययन में ही पृथ्वीकाय आदि छहों कायों का वर्णन है। वहां इनका क्रम प्रचलित क्रम से थोड़ा भिन्न है। पृथ्वी, अप, तेज, वनस्पति, त्रस एवं वायु इस प्रकार का क्रम वहां उपलब्ध है जबकि इसी सूत्र के नवें अध्ययन में पृथ्वी आदि का प्रचलित क्रम से ही उल्लेख है।' इस षड्जीवनिकाय को आचारांग स्थावर और त्रस-इन दो भागों में विभक्त करता है या नहीं ? इसका अवबोध प्रथम अध्ययन से प्राप्त नहीं होता है। वहां त्रस प्राणी यह उल्लेख है किंतु स्थावर शब्द का प्रयोग वहां पर नहीं है। पूरे आचारांग में मात्र एक सूत्र में स्थावर शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। वहां त्रस और स्थावर दोनों शब्दों का एक साथ प्रयोग है। जिससे ज्ञात होता है कि सम्पूर्ण जीव-समूह त्रस और स्थावर इन दो विभागों में विभक्त है। आचारांग में यह तथ्य प्रकारान्तर से प्राप्त है कि पृथ्वीकायिक आदि स्थावर जीव हैं, इसके अतिरिक्त द्वीन्द्रिय आदि त्रस जीव हैं । दशवैकालिक में षड्जीवनिकाय का उल्लेख है। वहां पर भी षड्जीवनिकाय का त्रस एवंस्थावर इनदो भागों में विभाग नहीं हुआहैकिंतु उसी आगम के चतुर्थ अध्ययन में अहिंसा महाव्रत के प्रसंग में त्रस और स्थावर का एक साथ प्रयोग हुआ है। जिससे ज्ञात होता है कि बस के अतिरिक्त पृथ्वीकाय आदि स्थावर हैं। वहां भी त्रसस्थावर का प्रकारान्तर से ही उल्लेख है। षड्जीवनिकाय : त्रस एवं स्थावर
उत्तराध्ययन सूत्र में षड्जीवनिकाय का विभाग स्थावर एवं त्रस इन दो भागों में हुआ है। वहां पृथ्वीकाय, अप्काय एवं वनस्पतिकाय इन तीन को स्थावर कहा है। तेजस्काय, वायुकाय एवं उदार त्रस ये त्रसकाय के भेद हैं।
1. दसवेआलियं, 4/9 2. उत्तराध्ययनशान्त्याचार्य, वृत्ति पत्र-244, त्रस्यन्ति-तापाद्युपतप्तौ छायादिकं प्रत्यभिसर्पन्तीति त्रसा:
द्वीन्द्रियादयः। 3. आयारो, 9/1/12, पुढविंच आउकायं तेउकायं च वाउकायं च।
पणगाइं बीय-हरियाई, तसकायं च सव्व सोणच्चा॥ . 4. वही, 9/1/14 अदु थावरा तसत्ताए, तसजीवाय थावरत्ताए। 5. दसवेआलियं, 4/3 6. वही,4/11 7. उत्तरज्झयणाणि, 36/69, पुढवी आउजीवा उतहेव य वणस्सई। इच्चेए थावरा तिविहा...........।। 8. वही. 36/107. तेऊ वाऊ य बोन्द्रव्वा. उराला य तसा तहा। इच्चेए तसा तिविहा...................।।
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