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जैन आगम में दर्शन
होता है । अनि का शरीर आदित्यलोक में होता है तथा वायु का शरीर वायुलोक में होता है । ' इस उल्लेख से यह तो अभिव्यंजित हो ही रहा है कि इन्होंने भी जलशरीर वाले, अग्निशरीर वाले एवं वायुशरीर वाले जीवों को तो स्वीकार कर लिया है।
वेद में भी अग्नि, वायु, जल आदि को देव रूप में स्वीकार किया है। देव में जीव तो होता
ही है ।
त्रसप्राणी
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आचारांग में अण्डज, पोतज, जरायुज, रसज, संस्वेदज, संमूर्च्छिम, उद्भिद् और औपपातिक-इन आठ प्रकार के त्रस जीवों का उल्लेख हुआ है। ' त्रस जीवों के प्रस्तुत भेदों से वे तीन प्रकार के हैं - 1. संमूर्च्छनज 2. गर्भज 3. औपपातिक । त्रस जीव के ये भेद उनके जन्म की अपेक्षा से है । अर्थात् किस रूप से वे जन्म लेते हैं। स्थावरकाय के जीव सम्मूर्च्छन ही होते हैं जबकि सकाय के जीव सम्मूर्च्छन के साथ गर्भज एवं औपपातिक भी होते हैं। सम्मूर्च्छन का अर्थ है - गर्भाधान के बिना ही यत्र-तत्र आहार ग्रहण कर शरीर का निर्माण करना । इस विधि से उत्पन्न होने वाले प्राणी सम्मूर्च्छनज कहलाते हैं। रसज, संस्वेदज और उद्भिद-ये तीन सम्मूर्च्छनज हैं। अण्डज, पोतज और जरायुज- ये गर्भज हैं। उपपात से जन्म लेने वाले देव और नारक औपपातिक कहलाते हैं ।
त्रस की परिभाषा
आचारांग में स प्राणियों का उल्लेख है किंतु वहां त्रस की परिभाषा उपलब्ध नहीं है । दशवैकालिक सूत्र में त्रस की परिभाषा उपलब्ध है
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1. तर्कसंग्रह, (संपा. केदारनाथ त्रिपाठी, मद्रास, 1985) पृ. 5-7, (शरीरमस्मदादीनाम्) शरीर वरुणलोके...... शरीरमादित्यलोके..... शरीरं वायुलोके ।
2.
(क) आयारो, 1 / 118, से बेमि-संतिमे तसा पाणा, , तं जहा- अंडया पोयया जराउया रसया संसेयया संमुच्छिमा उब्भिया ओववाइया ।
(ख) दसवे आलियं, 4 / 9
3. आचारांगवृत्ति पत्र - 62,
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अण्डज - अण्डों से उत्पन्न होने वाले मयूर आदि ।
पोतज-पोत का अर्थ है शिशु । जो शिशुरूप में उत्पन्न होते हैं, जिन पर कोई आवरण लिपटा हुआ नहीं हो तो वे पोतज कहलाते हैं। जैसे- हाथी आदि ।
जरायुज- जरायु का अर्थ गर्भ-वेष्टन या वह झिल्ली है, जो शिशु को आवृत किए रहती है। जन्म के समय में जो जरायु-वेष्टित दशा में उत्पन्न होते हैं, वे जरायुज हैं। भैंस, गाय आदि ।
रसज- छाछ, दही आदि रसों में उत्पन्न होने वाले सूक्ष्म शरीरी जीव ।
संस्वेदज-पसीने से उत्पन्न होने वाले खटमल, यूका (जूं) आदि जीव ।
औपपातिक- उपपात का अर्थ है-अचानक घटित होने वाली घटना । देवता और नारकीय जीव एक मुहूर्त के भीतर ही पूर्ण युवा बन जाते हैं, इसलिए इन्हें औपपातिक-अकस्मात् उत्पन्न होने वाला कहा है।
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