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आत्ममीमांसा
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अस्तित्व की दृष्टि से सब आत्माओं को स्वतन्त्र मानता है किंतु उन सबका स्वरूप एक जैसा है, उसमें किसी भी प्रकार का अन्तर नहीं है। यह स्वरूपगत आत्माद्वैत का सिद्धांत जैन आचार का महत्त्वपूर्ण आयाम है। जैन आचार का यह स्वीकृत तथ्य है कि सम्पूर्ण जीवों को जो आत्मवत् मानता है उसके पापकर्म का बन्ध नहीं होता।' सम्पूर्ण जीवों को आत्मवत् मानने का तात्पर्य यही है कि सभी जीव समान हैं। उनमें स्वरूपगत ऐक्य है, अत: जैन दर्शन नानात्मवादी होने पर भी अनेकान्त दर्शन के अनुसार किसी अपेक्षा विशेष से आत्माद्वैतवादी भी है। आत्म विमर्श : आचारांग और समयसार
आचारांग के परमात्मपद में शुद्ध आत्मतत्त्व का वर्णन हुआ है। जिसका उल्लेख हमने आचारांग एवं उपनिषद् वर्णित आत्म-तत्त्व के विवेचन के प्रसंग में किया है। समयसार में भी उसी शुद्ध आत्मतत्त्व का निश्चयनय की दृष्टि से वर्णन हुआ है। जिसका विमर्श करना यहां प्रासंगिक होगा। आचारांग में आत्मा को वर्ण आदि से रहित माना है। समयसार आचारांग की इसी अवधारणा का अनुगमन कर रहा है। समयसार 'आत्मा' शब्द के स्थान पर 'जीव' शब्द का प्रयोग कर रहा है। जैन दर्शन में आत्मा और जीव शब्द पर्यायवाची हैं जबकि वेदान्त में दोनों परस्पर भिन्नार्थक हैं। आत्मा ब्रह्म का वाचक है। जीव शब्द वहां पर जीवात्मा के लिए प्रयुक्त होता है। जैन दर्शन ऐसा भेद अस्वीकार करता है अत: वहां पर आत्मा एवं जीव ये दोनों समानार्थक हैं। शुद्ध जीव के वर्णन के प्रसंग में समयसार ने जीव को वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, रूप, शरीर, संस्थान एवं संहनन से रहित माना है
जीवस्स णत्थि वण्णो ण विगंधोण वि रसोण वि य फासो।
__ण वि रूवंण सरीरंण वि संठाणं ण संहणणं॥' आचारांग की तरह ही यहां भी जीव को 'अशब्द' अर्थात् पदातीत/शब्दातीत माना है। समयसार ने आत्मा को अवक्तव्य कहकर' आचारांग प्रतिपादित आत्मा की शब्दातीत, तर्कातीत एवं बुद्धि-अग्राह्यता का समर्थन किया है। आचारांग ने आत्मा को अरूपी सत्ता, परिज्ञ, संज्ञ आदि शब्दों से सम्बोधित किया है। समयसार में इस विचार का समर्थक शब्द 'चेतनागुण' उपलब्ध है, जो आत्मा की अमूर्त्तता एवं ज्ञानात्मकता दोनों का ही द्योतन कर रहा है।
1. दसवेआलियं, 4/9, सव्वभूयप्पभूयस्स, सम्मं भूयाइं पासओ।
पिहियासवस्स दंतस्स.पावं कम्मन बंधई। समयसार, (अनु. परमेष्ठीदास, सोनगढ़, 1964) 1/50 (जीव-अजीव अधिकार) 3. वही, 1/49 4. (क) आयारो,5/136,138 (ख) समयसार, 1/49
2.
सन
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