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जिसका स्कन्ध बन सके । काल के अतीत समय नष्ट हो जाते हैं । अनागत समय अनुत्पन्न होते हैं, इसलिए उसका स्कन्ध नहीं बनता । वर्तमान समय एक होता है, इसलिए उसका तिर्यक्-प्रचय (तिरछा फैलाव ) नहीं होता । काल का स्कन्ध या तिर्यक् प्रचय नहीं होता, इसलिए वह अस्तिकाय नहीं है।' काल की पूर्व एवं अपर पर्याय में ऊर्ध्वताप्रचय होता है । काल के प्रदेश नहीं होते इसलिए उसके तिर्यक्- प्रचय नहीं होता । '
“दिगम्बर परम्परा के अनुसार कालाणुओं की संख्या लोकाकाश के तुल्य है । आकाश के एक-एक प्रदेश पर एक-एक कालाणु अवस्थित है । काल शक्ति और व्यक्ति की अपेक्षा एक प्रदेशवाला है । इसलिए इसके तिर्यक् प्रचय नहीं होता । धर्म आदि पांच द्रव्य के तिर्यक्- प्रचय क्षेत्र की अपेक्षा से होता है और ऊर्ध्व प्रचय काल की अपेक्षा से होता है । उनके प्रदेश- समूह होता है, इसलिए वे फैलते हैं और काल के निमित्त से उनमें पौर्वापर्य या क्रमानुगत प्रसार होता है । समयों का प्रचय जो है वही काल द्रव्य का ऊर्ध्वप्रचय है । "
जैन आगम में दर्शन
आगम साहित्य में काल को अस्तिकाय नहीं माना गया है क्यों नहीं माना गया है इसका उल्लेख नहीं है यह आगम की शैलीगत विशेषता है कि वह तत्त्व के निरूपण में तर्क का सहारा नहीं लेता। उत्तरकालीन जैन साहित्य को क्यों का भी उत्तर देना था अत: उन्हें अनिवार्यता से हेतु का अवलम्बन लेना पड़ा।
काल के विभाग
काल के समय, आवलिका मुहूर्त, दिवस आदि से लेकर पुद्गलपरिवर्त तक अनेक विभाग किए गए हैं। इन विभागों के अतिरिक्त भी काल के अन्य प्रकार भी उपलब्ध हैं । स्थानांग एवं भगवती में काल को चार प्रकार का माना गया है. प्रमाणकाल, यथायुनिर्वृत्तिकाल, मरणकाल और अद्धाकाल । '
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जिसके द्वारा वर्ष आदि का ज्ञान होता है उसे प्रमाणकाल कहा जाता है, यह अद्धाकाल का ही दिवस आदिलक्षण वाला भेद है । "
3.
4.
1. द्रव्यानुयोगतर्कणा, 10 / 16 वृ. (पृ. 179), परन्तु स्कन्धस्य प्रदेशसमुदाय: कालस्य नास्ति तस्माद्धर्मास्तिकायादीनामिव तिर्यक्प्रचयता न संभवति एतावता तिर्यक्प्रचयत्वं नास्ति । तेनैव कालद्रव्यमस्तिकाय इति नोच्यते ।
2. वही, 10 / 16, प्रचयोर्ध्वत्वमेतस्य द्वयोः पर्याययोर्भवेत् ।
तिर्यक्प्रचयता नास्य प्रदेशत्वं विना क्चचित् ॥
महाप्रज्ञ, आचार्य, जैन दर्शन मनन और मीमांसा, पृ. 195
अणुओगदाराई, सूत्र 415/1, समयावलिय - मुहुत्ता, दिवसमहोरत्त पक्खमासा य ।
संवच्छर जुग- पलिया, सागर- ओसप्पि परियट्टा ।
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5.
(क) ठाणं, 4 / 13 4
(ख) अंगसुनाणि 2, 11 / 119
6. भगवतीवृत्ति पत्र 533, प्रमीयते परिच्छिद्यते येन वर्षशतादि तत् प्रमाणं स चासौ कालश्चेतिप्रमाणकाल:..... अद्धाकालस्य विशेषो दिवसादिलक्षण: ।
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