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________________ तत्त्वमीमांसा काल-परमाणु भगवती सूत्र में चार प्रकार के परमाणुओं का उल्लेख हुआ है।' यद्यपि यह उल्लेख द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव के संदर्भ में हुआ है। जैसे कि आगम साहित्य की शैली है वह वस्तु की व्याख्या द्रव्य क्षेत्र आदि के माध्यम से करता है, उदाहरण स्वरूप हम पंचास्तिकाय का संदर्भ ले सकते हैं । ' किंतु प्रस्तुत प्रसंग में परमाणु के प्रकार पुद्गल से जुड़े हुए नहीं है अर्थात् पौद्गलिक परमाणु की द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव के आधार पर व्याख्या नहीं की जा रही है अपितु द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव के परमाणु बताए जा रहे हैं । द्रव्यरूप परमाणु को द्रव्य परमाणु, आकाशप्रदेश को क्षेत्र परमाणु, समय को कालपरमाणु एवं भावपरमाणु को पुद्गल का परमाणु माना गया है । ' प्रस्तुत प्रसंग में विशेष मननीय काल-परमाणु है। भगवती टीका में समय को काल परमाणु कहा है, जैसा कि हमने ऊपर उल्लेख किया है। जैन दर्शन के अनुसार काल के अन्तिम अविभाज्य भाग को समय कहा जाता है जिसे जैनेतर दर्शनों में क्षण कहा गया है ।' क्षण और समय ये दोनों शब्द एक ही भाव को प्रकट कर रहे हैं उनको परस्पर पर्यायवाची माना जा सकता है । श्वेताम्बर परम्परा में काल को पर्याय तथा स्वतंत्र द्रव्य रूप में मानने की अवधारणा है ! भगवती टीका में समय को काल-परमाणु कहा है।' जबकि दिगम्बर परम्परा में समय को कालाणु की पर्याय कहा गया है । ' द्रव्यानुयोगतर्कणा में समय के आधार को कालाणु कहा गया है। काल का ऊर्ध्वप्रचय श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों परम्पराओं में काल के अस्तित्व को तो स्वीकार किया गया है किंतु उसे अस्तिकाय नहीं माना है । अस्तिकाय वही द्रव्य हो सकता है 1. अंग सुत्ताणि 2 (भगवई) 20 / 40, चउव्विहे परमाणु पण्णत्ते, तं जहा- दव्वपरमाणू खेत्तपरमाणू, कालपरमाणू, भावपरमाणू ॥ 137 2. वही, 2 / 125-129 3. भगवतीवृत्ति पत्र 788 तत्र द्रव्यरूपः परमाणुर्द्रव्यपरमाणु :- एकोऽणुर्वर्णादिभावानामविवक्षणात् द्रव्यत्वस्यैव विवक्षणादिति, एवं क्षेत्र परमाणु : आकाश प्रदेश: कालपरमाणुः समयः भावपरमाणुः परमाणुरेव वर्णादिभावानां प्राधान्यविवक्षणात् । 4. Mookerjee, Satakari, Illuminator of Jaina Tenets P. 14 (footnote) samaya, being the smallest indivisible quantum of time, can perhaps be appropriately called time-point. 5. पातंजलयोगदर्शनम्. 3/52, यथापकर्षपर्यन्तं द्रव्यं परमाणुरेवं परमापकर्षपर्यन्तः कालः क्षणः । 6. भगवतीवृत्ति पत्र 788 7. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, (संपा. क्षु. जिनेन्द्रवर्णी, दिल्ली, 1986) भाग 2 पृ. 84, समयस्तावत्सूक्ष्मकालरूप: प्रसिद्ध: स एव पर्याय: न द्रव्यम् तच्च कालपर्याय स्योपादानकारणभूतं कालाणुरूपं कालद्रव्यमेव न च पुद्गलादि । 8. द्रव्यानुयोगतर्कणा, 10/14, मन्दगत्याप्यणुर्यावत्प्रदेशे नभसः स्थितौ । याति तत्समयस्यैव स्थानं कालाणुरुच्यते ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
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