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तत्त्वमीमांसा
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ब्रह्मलोक कल्प में रिष्ट विमान प्रस्तर के समानान्तर आखाटक के आकार वाली समचतुरस्र संस्थान से संस्थित प्रत्येक दिशा में दो-दो कृष्णराजियां हैं।'
भगवती सूत्र में तमस्काय एवं कृष्णराजियों का भौगोलिक एवं गणितीय दृष्टि से विवेचन है।
इनका जैसा स्वरूप वर्णित किया गया है, उसकी आधुनिक विज्ञान सम्मत Black hole से तुलना यथासंभव की जा सकती है। आचार्य महाप्रज्ञ ने इस दिशा में संक्षिप्त प्रयत्न किया है। इस क्षेत्र में तुलनात्मक दृष्टि से अधिक विचार एवं अन्वेषण अपेक्षित है। काल-द्रव्य
__ पांच अस्तिकाय के साथ जब ‘काल-द्रव्य' को योजित कर दिया जाता है तब उन्हें ही षड्द्रव्य कहा जाता है। विश्व-व्यवस्था में कालद्रव्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
जैन परम्परा में काल के संदर्भ में दो अवधारणाएं प्राप्त हैं - (1) प्रथम अवधारणा के अनुसार काल स्वतंत्र द्रव्य नहीं है, वह जीव और अजीव की
पर्यायमात्र है। इस मान्यता के अनुसार जीव एवं अजीव द्रव्य के परिणमन को ही उपचार से काल माना जाता है। वस्तुत: जीव और अजीव ही काल द्रव्य है। काल की स्वतंत्र सत्ता नहीं है। पातंजलयोगसूत्र में भी काल की वास्तविक सत्ता नहीं मानी गई है। काल वस्तुगत सत्य नहीं है। बुद्धिनिर्मित तथा शब्दज्ञानानुपाती है। व्युत्थेितदृष्टि वाले व्यक्तियों को वस्तुस्वरूपकी तरह अवभासित होता है। इसका
यही भावार्थ है कि काल का व्यावहारिक अस्तित्व है, तात्त्विक अस्तित्व नहीं है। (2) दूसरी अवधारणा के अनुसार काल स्वतंत्र द्रव्य है। अद्धासमय के रूप में उसका
पृथक् उल्लेख है। यद्यपि काल को स्वतंत्र द्रव्य मानने वालों ने भी उसको अस्तिकाय नहीं माना है। सर्वत्र धर्म-अधर्म आदि पांच अस्तिकायों का ही उल्लेख
प्राप्त होता है।' श्वेताम्बर परम्परा में काल की दोनों प्रकार की अवधारणाओं का उल्लेख है किंतु दिगम्बर परम्परा में काल को स्वतंत्र द्रव्य मानने वाली अवधारणा का ही उल्लेख है। 1. अंगसुत्ताणि 2 (भगवई), 6/90 2. भगवई (खण्ड 2) पृ. 278 3. पंचास्तिकाय, गा. 6, ते चेव अत्थिकाया तेकालियभावपरिणदा णिच्चा।
गच्छंति दवियभावं परियट्टणलिंगसंजुत्ता ।। 4. ठाणं,2/387 समयाति वा, आवलियाति वा, जीवाति वा अजीवाति वा। 5. पातंजलयोगदशनम्, (संपा. स्वामी हरिहरानन्द, दिल्ली, 1991) 3/52, सखल्वयं कालो वस्तुशून्यो
बुद्धिनिर्माणः शब्दज्ञानानुपाती लौकिकानां व्युत्थितदर्शनानां वस्तुस्वरूप इवावभासते। 6. अंगसुताणि 2 (भगवई) 13/61-71 7. वही,2/124
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