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________________ तत्त्वमीमांसा क्रमांक गुणांश 5. जघन्येतर + समजघन्येतर 6. 7. 8. दिगम्बर ग्रंथ षट्खंडागम के अनुसार - क्रमांक गुणांश जघन्य + जघन्य जघन्य + एकाधिकअधिक जघन्येतर + समजघन्येतर 1. 2. 3. 4. 5. 6. 1. 2. 3. 4. तत्त्वार्थसूत्र के अनुसारगुणांश क्रमांक 5. 6. जघन्येतर + एकाधिक जघन्येतर जघन्येतर + द्व्यधिक जघन्येतर है जघन्येतर + त्र्यादिअधिक जघन्येतर नहीं सदृश नहीं नहीं भाजन- प्रत्ययिक बंध जघन्येतर + एकाधिक जघन्येतर जघन्येतर + द्व्यधिक जघन्येतर जघन्येतर + त्र्यादिअधिक जघन्येतर नहीं सदृश नहीं नहीं नहीं नहीं Jain Education International है जघन्य + जघन्य नहीं जघन्य + एकाधिक नहीं जघन्येतर + समजघन्येतर नहीं जघन्येतर + एकाधिक जघन्येतर नहीं जघन्येतर + द्व्यधिक जघन्येतर है जघन्येतर + त्र्यादिअधिक जघन्येतर नहीं सदृश विसदृश नहीं नहीं नहीं For Private & Personal Use Only विसदृश नहीं नहीं Ne ne ne me विसदृश नहीं नहीं नहीं नहीं है नहीं सादि विस्रसा बंध का यह द्वितीय प्रकार है। भाजन का अर्थ है - आधार । किसी भाजन में रखी हुई वस्तु का स्वरूप दीर्घकाल में बदल जाता है, वह भाजन प्रत्ययिक बंध है । जैस पुरानी मदिरा अपने तरल रूप को छोड़कर गाढी बन जाती है। पुराना गुड़ और पुराने तंदुल पिण्डीभूत हो जाते हैं।' इस प्रकार के बंध को भाजन बन्ध कहा जाता है । 127 1. भगवतीवृत्ति, पत्र 395, भाजनं आधारः । 2. वही, 395, तत्र जीर्णसुरायाः स्त्यानीभवनलक्षणो बन्ध:, जीर्णगुडस्य जीर्णतन्दुलानां च पिण्डीभवनलक्षणः । www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
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