________________
तत्त्वमीमांसा
स्कन्ध बनते हैं । स्कन्ध के टूटने से अन्य अनेक स्कन्ध भी बन जाते हैं। स्कन्ध के टूटने से परमाणु भी बन जाते हैं। दो परमाणु पुद्गल के मिलने से द्विप्रदेशी स्कन्ध बनता है और द्विप्रदेशी स्कन्ध के टूटने से दो परमाणु बन जाते हैं। ऐसे ही तीन परमाणु मिलने से त्रिप्रदेशी स्कन्ध बनता है और उनके टूटने से दो प्रकार की उत्पत्ति हो सकती है - तीन पृथक् पृथक् परमाणु अथवा एक परमाणु और एक द्विप्रदेशी स्कन्ध । इस प्रकार संघात एवं भेद से स्कन्ध का निर्माण होता है' तथा अणु भेद से ही उत्पन्न होता है । '
सामान्यतः परमाणु को कारण ही माना जाता है। परमाणु स्कन्ध का जनक होता है किन्तु स्कन्ध के टूटने से ही परमाणु बनता है अतः वह स्कन्ध का कार्य भी है। नय चक्र में परमाणु के कारण एवं कार्य इन दोनों रूपों का वर्णन है ।
पुद्गल के परिवर्तन के हेतु
जैन दर्शन में छह द्रव्य माने गए हैं। उनमें जीव और पुद्गल ये दो गतिशील द्रव्य हैं, अर्थात् इनमें स्वभाव पर्याय के साथ विभाव पर्याय भी होती है। जीव एवं पुद्गल में अर्थपर्याय एवं व्यञ्जनपर्याय दोनों ही होती हैं, अन्य में अर्थपर्याय ही होती है, व्यञ्जन पर्याय नहीं होती । भगवती में प्रश्न उपस्थित किया गया कि परमाणु एवं द्विप्रदेशी से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध एजन, व्येजन, चलन, स्पन्दन, प्रकम्पन, क्षोभ और उदीरणा करता है, नए-नए भाव में परिणत होता है ? भगवान ने अपनी अनेकान्तात्मक शैली के आधार पर उत्तर दिया कि एजन आदि क्रियाओं में परमाणु एवं स्कन्ध आदि कदाचित परिणत होते भी हैं और नहीं भी होते हैं । '
पुद्गल में अर्थपर्यायात्मक स्वाभाविक परिवर्तन तो स्वतः होता रहता है किन्तु उसकी व्यञ्जन पर्यायात्मक अवस्था एजन, व्येजन आदि क्रियाओं के बिना नहीं हो सकती। परमाणु की स्कन्ध के रूप में परिणति एवं स्कन्ध की अन्य स्कन्ध अथवा परमाणु के रूप में परिणति एजन आदि क्रियाओं के कारण ही होती है। उनमें एजन आदि क्रिया होती है तो वे नई-नई अवस्थाओं में परिणित होते हैं।' यदि ये क्रियाएं नहीं होती हैं तो वे अवस्थान्तर को प्राप्त नहीं कर सकते।' इसलिए ही भगवती में कहा गया कि वे एजन आदि करते भी है और नहीं भी करते ।
1. सभाष्यतत्त्वार्थाधिगम, 5 / 26, संघातभेदेभ्य उत्पद्यन्ते ।
2. वही, 5 / 27, भेदादणुः ।
3.
नयचक्र ( माइल्ल धवल), श्लोक
113
29,
Jain Education International
जो खलु अणाइणिहणो, कारणरूवो हु कज्जरूवो वा । परमाणुपोग्लाणं सो दव्व सहावपज्जाओ ।
4. अंगसुत्ताणि भाग 2 (भगवई) 5 / 150-153
5. वही, 5 / 150
6.
वही, 5 / 151
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org