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जैन आगम में दर्शन
की कौन-सी आवृत्ति है, यह कहना कठिन है किन्तु इतना निश्चित है कि जैसा पाठ निर्धारण अन्तिम वाचना में हुआ था, वैसा पाठ अविकल रूप में हमें प्राप्त नहीं है।
मूल शुद्ध पाठ तक पहुंचने की पद्धति का विकास मूलत: पश्चिम के विद्वानों द्वारा किया गया।उसपद्धति के द्वारा उन्होंने अनेक आगमोंकासंपादन किया। तत्पश्चात्भारतीय विद्वानों ने भी मूल आगम और उसके व्याख्या साहित्य के संपादन में अपना पर्याप्त श्रम लगाया। इस सारे परिश्रम का ही फल है कि शोधार्थियों को आज आगम और आगम का व्याख्या साहित्य बहुत कुछ शुद्ध रूप में मिल जाता है। इसलिए हमने इस अध्याय के अन्त में कुछ मुख्य संपादन कार्यों का उल्लेख किया है। उस साहित्य के आधार पर जो विश्लेषणात्मक समीक्षा कार्य हुआ, उसका उल्लेख हम विषय-प्रवेश में कर चुके हैं।
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