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________________ योग का स्वरूप एवं भेद आदि जितने भेद हैं, वे सब 'योग' हैं। अतः अध्यात्म सम्यक्चारित्र का समानार्थक सिद्ध होता है । २ १. अध्यात्मयोग सम्यग्दृष्टि अवस्था में संसार से विरत होकर किया गया आत्मलक्षी सामान्य शुद्ध आचार 'अध्यात्म' है। दूसरे शब्दों में शुद्धात्मा में विशुद्धता लाने वाले अनुष्ठान या आचरण को 'अध्यात्म' कहा गया है।' चारित्र-शुद्धि के लिए अध्यात्मयोग का अनुष्ठान परमावश्यक है। इसलिए जैनागमों में मुमुक्षु को बार-बार अध्यात्म से युक्त होने का उपदेश दिया गया है। यही कारण है कि हरिभद्र ने भी अध्यात्मयोग की चर्चा की है। शास्त्रों में आत्मा, मन और प्राण वायु के एक रूप 'समतायोग' को 'अध्यात्मयोग कहा गया है, ' जबकि आ० हरिभद्र के अनुसार उचित (शास्त्रोक्त विहित ) प्रवृत्ति से अणुव्रतों, महाव्रतों आदि का पालन करना, आगमप्रणीत जीव, अजीवादि तत्त्वों का चिंतन करना तथा मैत्री आदि भावनाओं का जीवन में सम्यक् रूपेण पालन करना ही अध्यात्म है। उपा० यशोविजय जी ने अध्यात्म की उक्त व्याख्या पर विचार करते हुए अध्यात्म का यौगिक एवं रूढ़ि दोनों अर्थों में लक्षण प्रस्तुत किया है। यौगिक अर्थ के अनुसार, आत्मा के शुद्ध स्वरूप को लक्ष्य में रखकर पंचाचार (अर्थात् ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप एवं वीर्य रूप पांच आचारों) के आचरण करने को अध्यात्म कहते हैं, और रूढ़ि अर्थ के अनुसार, बाह्य व्यवहार से प्राप्त हुए मैत्री, प्रमोद, माध्यस्थ्य और कारुण्य भावनाओं से सुवासित निर्मल मन को अध्यात्म कहते ८ हैं। अध्यात्म के बिना कोई भी धर्मानुष्ठान मोक्ष- साधक नहीं होता और आत्मशुद्धि किये बिना जीव अध्यात्मादि योगों का पालन करने में समर्थ नहीं हो सकता। पंचाचार का पालन आत्मा के निज गुणों को विकसित या प्रकट करने का उपक्रम है। जब आत्मा का विकास पराकाष्ठा पर पहुँच जाता है, तब अनायास ही मोक्ष प्राप्त हो जाता है। यही आत्मा की निर्विकल्प ज्ञान दशा है और यही अध्यात्म की पराकाष्ठा है। आ० हरिभद्र के अनुसार केवल शुक्लपाक्षिक जीव जिसने मोहरागमयी ग्रन्थि का भेदन कर १. २. ३. ४. ६. ७. ८. ६. (क) देशादि भेदतश्चितमिदं चोक्तं महात्मभिः । अत्र पूर्वोदितो योगोऽध्यात्मादिः संप्रवर्तते ।। योगबिन्दु, ३५७ - () Desavirati occupies the fifth Guṇasthana while Sarva Caritri (virati) occupies the sixth or seventh Gunasthana. Then there are names for the over all character of the person occupying the Guṇasthānas eighth etc. By deśa etc., Haribhadra means all these means. -Yogabindu., p.93 Now we can treat Adhyatma as a near synonym for good conduct. Yogadrştisamuccya.& Yogavimšikā. Appendix I, p.100. योगबिन्दु ४०४ अध्यात्मोपनिषद्, १/२ (क) निज शुद्धात्मनि विशुद्धाधारभूतेऽनुष्ठानमध्यात्मम्। समयसार तात्पर्यवृत्ति, परि० पृ० ५२५ (ख) द्रव्यसंग्रह, टीका ५७/२३८ - (क) अज्झष्पज्झाणजुते (अध्यात्मध्यानयुक्तः) अध्यात्मनि आत्मानमधिकृत्य आत्मालम्बनं ध्यानं चित्तनिरोधस्तेन युक्तः । इति व्याख्याकारः • प्रश्नव्याकरण (टीका) संवरद्वार ३. (ख) अज्झयजोगसुद्धादाणे उवदिट्ठिए ठिअप्पा सूत्रकृतांगसूत्र १६ / ३ आत्ममनो मरुत्तत्त्वसमतायोगलक्षणो ह्यध्यात्मयोगः । - यशस्तिलकचम्पू, ६/१, औचित्याद् व्रतयुक्तस्य वचनात् तत्त्वचिन्तनम् । मैत्र्यादिसारमत्यन्तमध्यात्मं तद्विदो विदुः ।। - योगबिन्दु, ३५८ आत्मानमधिकृत्य स्याद. य. पंचाचारचारिमा । शब्दयोगार्थनिपुणास्तदध्यात्मं प्रचक्षते । रूढ्यर्थनिपुणास्त्वाहुश्चित्तं मैत्र्यादि वासितम् । अध्यात्मं निर्मलं बाह्यव्यवहारोपबृंहितम् ।। Jain Education International 73 अध्यात्मोपनिषद्, १/२ - अध्यात्मोपनिषद्, १/३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001981
Book TitlePatanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAruna Anand
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2002
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size25 MB
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