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________________ पातञ्जल एवं जैनयोग-साधना-पद्धति तथा सम्बन्धित साहित्य 39 है।' उनका साहित्य अतिशय रोचक, मर्मस्पर्शी और सजीव है। उनकी प्रत्येक रचना में नया दृष्टिकोण, नयी शैली और नया चिन्तन और वैशिष्टय दष्टिगोचर होता है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित की प्रशस्ति में लिखा है कि उन्होंने व्याकरण की रचना तो सिद्धराज जयसिंह के अनुरोध से ही की थी, किन्तु द्वयाश्रयकाव्य, छन्दोनुशासन, काव्यानुशासन, योगशास्त्र और त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित आदि का प्रणयन लोकार्थ अर्थात् सर्वसाधारण के लिए किया था। __ आ० हेमचन्द्र गुजरात में धार्मिक प्रभाव की वृद्धि करने हेतु सर्वधर्म-समभावी, सत्योपासक, जैनधर्म के प्रचारक तथा देशोद्धारक के रूप में प्रकट हुए। उनकी बहुश्रुतता, सर्वशास्त्र-समन्वयशक्ति, सर्वशास्त्रज्ञता, जिनशासन-सेवा आदि विशेषताओं को देखते हुए उनकी "कलिकालसर्वज्ञ की उपाधि नितांत संगत है। योगशास्त्र : एक परिचय __ “योगशास्त्र हेमचंद्र की योगविषयक अनूठी कृति है। विद्वानों की दृष्टि में साधक की रक्षा के लिए यह वज्र कवच के समान उपयोगी है। योगशास्त्र में कहीं भी हरिभद्रसूरि के योगविषयक ग्रन्थों का प्रभाव दृष्टिगत नहीं होता, जबकि शुभचन्द्र के "ज्ञानार्णव' का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। हेमचन्द्र के "योगशास्त्र' को पढ़ते ही आचार्य शुभचन्द्र के "ज्ञानार्णव की स्मृति सहज हो उठती है। योगशास्त्र में १२ प्रकाश तथा १०१२ श्लोक हैं । इस ग्रन्थ में हेमचन्द्र ने योग की पारम्परिक पद्धतियों का निरूपण कर गुरु के उपदेश एवं, स्वानुभव के आधार पर योग के विभिन्न साधनों का विवेचन किया है। उन्होंने पातञ्जलयोगदर्शन के "चित्तवृत्तिनिरोध" से लेकर सर्वभूमिकाओं के लिए समान रूप से यम, नियमादि ८ अंगों का वर्णन किया है। इस दृष्टि से हेमचन्द्र के “योगशास्त्र की सर्वप्रमुख विशेषता यह है कि उन्होंने पातञ्जलयोगसूत्र की शैली का अनुकरण करते हुए भी वर्णन-क्रम में मौलिकता दर्शायी है और मार्गानुसारी से लेकर गृहस्थधर्म, साधुधर्म आदि उच्च आध्यात्मिक भूमिकाओं तक पहुँचने के लिए ज्ञान-दर्शन और चरित्रात्मक योग-साधना का सुन्दर क्रम उपस्थित किया है। इसके अतिरिक्त, इसमें आत्मा को परमात्मस्वरूप बनाने के लिए धर्मध्यान, शुक्लध्यान, इन्द्रियकषाय, मनोविजय, समता, द्वादश अनुप्रेक्षा, चार भावना आदि विषयों का विशद विवेचन भी है। आसन, प्राणायाम आदि का विस्तृत वर्णन करते हुए आचार्य हेमचन्द्र ने प्राणवायु द्वारा इष्ट-अनिष्ट, जीवन-मृत्यु आदि का ज्ञान, यंत्र, मंत्र, विद्या, लग्न, छाया, उपश्रुति आदि द्वारा काल-ज्ञान, नाड़ी-शुद्धि एवं परकाय प्रवेश विषयों की जानकारी भी प्रदान की है। इससे योगशास्त्र पर हठयोग एवं तन्त्रयोग का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। आ० हेमचन्द्र ने हठयोग की जटिल व भौतिक प्रक्रियाओं को आत्मचिन्तन की ओर मोड़कर जीवन को योग की प्रक्रियाओं से जोड़ दिया है। इस योगशास्त्र का आ० शुभचन्द्र कृत ज्ञानार्णव से बहुत साम्य है। ऐसा प्रतीत होता है कि आ० हेमचन्द्र ने आ० शुभचन्द्र के ज्ञानार्णव से प्रभावित होकर ज्ञानार्णव का ही संक्षिप्त, सरल व क्रमबद्ध रूप प्रस्तुत कर दिया है। यह ग्रन्थ जिज्ञास साधक के लिए अध्यात्म-ज्ञान का विश्वकोष और उच्चकोटि के साधक के लिए आत्म-साक्षात्कार का मार्गदर्शक है। १. कलुप्तं व्याकरणं नवं विरचितं छन्दो नवं द्वयाश्रयालंकारो प्रथितौ नयौ प्रकटितं श्रीयोगशास्त्रं नवम् । तर्कः सज्जनितो नवो जिनवरादीनां चरित्रं नवं बद्धं येन न केन केन विधिना मोहः कृतो दूरतः ।। -- सोमप्रभसूरिकृत शतार्थकाव्य की टीका श्लो०६३ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, प्रशस्ति पद्य १६-१७ द्रष्टव्य : मोहराजपराजय, अंक ५ 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001981
Book TitlePatanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAruna Anand
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2002
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size25 MB
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