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________________ 36 पातञ्जलयोग एवं जैनयोग का तुलनात्मक अध्ययन और वे परम शिवभक्त थे। दर्शन के प्रति उनकी अनुरक्ति इतनी अधिक थी कि उन्होंने आ० हेमचन्द्र के अतिरिक्त अन्य विभिन्न मतावलम्बी विद्वानों को भी अपनी पण्डित-सभा में स्थान दे रखा था। आ० हेमचन्द्र ने अपने पाण्डित्य से राजा को प्रभावित ही नहीं किया, अपितु जैनधर्म के प्रति उन्हें विशेष श्रद्धालु बनाने में भी सफलता प्राप्त की। __हेमचन्द्र की शिक्षा और उपदेश के प्रभाव से सिद्धराज जयसिंह जैनधर्म के प्रति अधिक आकृष्ट होते और उन्होंने एक जैन मंदिर भी बनवाया। हेमचन्द्र के प्रति राजा का ऐसा भाव हो गया था कि जब तक वे उनके अमृत-समान उपदेश को न सुन लें, उन्हें संतोष नहीं होता था। ___ गुजरात नरेश सिद्धराज जयसिंह के आग्रह से हेमचन्द्र ने संस्कृत-प्राकृत भाषा के एक आदर्श और सरल, किन्तु सर्वांग-परिपूर्ण व्याकरण की रचना की और राजा के प्रति सम्मान भाव प्रदर्शित करने हेतु ग्रन्थ को 'सिद्धहैम' नाम दिया, जिसका अर्थ है 'हेमचन्द विरचित' एवं 'सिद्धराज को समर्पित' । उस समय से जैनपरम्परा में अन्य व्याकरण उपेक्षित हो गए और 'सिद्धहैमचन्द्र' का ही सर्वत्र अध्ययन किया जाने लगा। हेमचन्द्र का यह व्याकरण 'सिद्धहैमशब्दानुशासन' के नाम से विख्यात है। राजा जयसिंह की प्रेरणा को व्याकरण के साथ-साथ कोश, छन्द तथा अलंकारशास्त्र की रचना करने का निमित्त प्राप्त हुआ और उनमें अपने नवीन व्याकरण के नियमों के उदाहरण प्रस्तुत करने तथा चालुक्य राजाओं के गौरवगान के निमित्त गुजरात के लोकजीवन को प्रतिबिम्बित करने वाले 'द्वयाश्रय' नामक महाकाव्य की रचना करने का भाव उत्पन्न हुआ। साहित्य रचना के साथ हेमचन्द्राचार्य ने गुजरात की राजनीति को भी एक नया मोड़ दिया। वे गुजरात के तत्कालीन राजा सिद्धराज जयसिंह का उत्तराधिकारी कुमारपाल को बनाना चाहते थे। इसके पीछे ग हैं। पहला कारण तो यह है कि कुमारपाल आचार्य श्री से अत्यन्त उपकृत था। दूसरा, वे गुजरात में अहिंसा के कई कार्य करवाना चाहते थे। तीसरा, गुजरात में जैनधर्म के सिद्धान्तों का जनता में प्रचार-प्रसार करना था। कुमारपाल के राजा बनने के पश्चात् उन्हें उक्त सब कार्यों में सफलता मिली। इन सब कारणों के अतिरिक्त सबसे महत्वपूर्ण कारण कुछ और था। 'प्रभावकचरित' में उपलब्ध विवरण के अनुसार कुमारपाल ने जीवनरक्षा के लिए हेमचन्द्र का आश्रय प्राप्त किया था, क्योंकि राजा जयसिंह उसे अपने जीवनकाल में ही मार डालना चाहते थे। हेमचन्द्र ने कुमारपाल के अंगों पर विशेष राजचिह्न देखकर भविष्यवाणी की थी कि कुमारपाल ही इस समस्त प्रदेश का भावी शासक होगा। कुमारपाल के सन्देह व्यक्त करने पर हेमचन्द्र ने यह प्रतिज्ञा की कि यदि कुमारपाल को राज्य की प्राप्ति न हुई तो वे भविष्यवाणी करना छोड़ देंगे यह देखकर कुमारपाल ने स्वीकार किया कि यदि भविष्यवाणी सत्य परिणत हुई तो वे उनकी आज्ञा का पालन करेंगे। हेमचन्द्र ने उसी समय कुमारपाल से प्रतिज्ञा करवा ली कि यदि वह राजा बन गया तो जैनधर्म स्वीकार कर लेगा। हेमचन्द्र की भविष्यवाणी सत्य हई और १. कुमारपालप्रतिबोध, पृ०२२१ २. (क) यशो मम तव ख्यातिः पुण्यं च मनिनायक !। विश्वलोकोपकाराय, कुरु व्याकरणं नवम् ।। - प्रभावकचरितम्, २२/८४ (ख) इमां पुराणवार्तामपहायास्माकमेव सन्निहितं कमपि व्याकरणकर्तारं ब्रूते....| - प्रबन्धचिन्तामणि, भा० १ पृ०६० प्रबन्धचिन्तामणि, भा० १, पृ०६० प्रमाणमीमांसा, प्रस्तावना, पृ० ४० ५. प्रभावकचरित, पृ० १८५ "सं० ११६६ वर्षे कार्तिकददि २ रवौ हस्तनक्षत्रे यदि भवतः पट्टाभिषेको न भवति तदाऽतःपरं निमित्नावलोकनसंन्यासः इति पत्रकमालिख्यक मन्त्रिणेऽपरं तस्मै समर्पयत्। - प्रबन्धचि तामणि, भा० १ पृ० ७८ ७. चौलुक्य कुमारपाल, पृ० ७६; प्रबंधचिन्तामणि, भा० १, पृ० ७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001981
Book TitlePatanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAruna Anand
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2002
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size25 MB
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