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पातञ्जल एवं जैनयोग-साधना-पद्धति तथा सम्बन्धित साहित्य
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आचार्य पद के बाद सोमचन्द्र का नाम बदलकर 'हेमचंद्र' रख दिया गया।' 'कुमारपालप्रतिबोध' के अनुसार हेम' जैसी देह की कांति और चन्द्र की तरह आनन्ददायक होने के कारण वह हेमचन्द्र के नाम से विख्यात हुए। प्रो० कृष्णमाचारियर के कथनानुसार एक बार सोमचन्द्र ने शक्तिप्रदर्शन के लिए अपने बाह को अग्नि में रख दिया, लेकिन आश्चर्य की बात है कि सोमचन्द्र का जलता हुआ हाथ सोने का बन गया। इस घटना के उपरान्त ही सोमचन्द्र 'हेमचन्द्र' के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
समग्र लोक के उपकारार्थ हेमचन्द्र विविध देशों में विहार करते थे। एक बार गुरु की आज्ञा से उनका विहार गुर्जरदेश में ही मर्यादित हुआ। तदनुसार वे राज्य के अणहिल्लपुर पाटण नगर में प्रविष्ट हुए। हेमचन्द्र की विद्वत्ता की ख्याति शनैः-शनैः सम्पूर्ण नगर में, यहाँ तक कि वहाँ के राज्य दरबार में भी फैलने लगी। उनके पाण्डित्य से महापराक्रमी गुर्जरनरेश जयसिंह सिद्धराज भी बहुत प्रभावित हुए। कहा जाता है कि हेमचन्द्र के प्रथम आश्रयदाता चौलुक्यराजा सिद्धराज जयसिंह (सं०१०५०-११६६) ही थे।६।।
'प्रभावकचरित' के अनुसार राजा जयसिंह और हेमचन्द्र का प्रथम साक्षात्कार अणहिल्लपर के किसी संकरे मार्ग पर हुआ था, जहाँ से जयसिंह के हाथी को निकलने में कठिनाई हो रही थी। इस प्रसंग में हेमचन्द्र ने जयसिंह को निःशंक होकर अपने गजराज को ले जाने के लिए कहा और श्लेष संस्तुति की।" राजा जयसिंह ने उन्हें दरबार में आने का निमन्त्रण दिया, जिसे हेमचन्द्र ने सहर्ष स्वीकार किया। 'कुमारपालचरित' में भी यह वृत्तान्त कुछ परिवर्तित रूप में मिलता है। तदनुसार जब राजा जयसिंह ने मालवा पर अंतिम विजय (वि० सं० ११६१–११६२ में) प्राप्त की तब भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों के प्रतिनिधि उनका अभिनन्दन करने के लिए आये। उस समय जैन सम्प्रदाय के प्रतिनिधि के रूप में हेमचन्द्र ने उनका स्वागत किया था। चौलुक्यराजा सिद्धराज जयसिंह उनकी विद्वत्ता और असाधारण पाण्डित्य से अत्यधिक प्रभावित हुए और उनके भक्त बन गये। डॉ० ब्यूलर के अनुसार हेमचन्द्र मालवा की विजय के पूर्व ही जयसिंह के दरबार में प्रवेश कर चुके थे। अनुमान किया जाता है कि उक्त घटना वि० सं० ११६१-६२ (ई० सं० ११३६ के प्रारम्भ) में घटित हुई होगी और उस समय हेमचन्द्र की आयु ४६-४७ वर्ष की होगी।१२
अपने पाण्डित्य, दूरदर्शिता और सर्वधर्म-स्नेह के कारण हेमचन्द्र का प्रभाव राज्यसभा में उत्तरोत्तर बढ़ता गया। विन्टरनिट्ज़ के अनुसार राजा जयसिंह की साहित्य और विज्ञान में अत्यधिक रुचि थी
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१ प्रबंधचिन्तामणि, भा० १, पृ०८४
कुमारपालप्रतिबोध, पृ० २२ "To demonstrate his powers he set his arms in a blazing fire and his father found to his surprise the flashing arms turned into gold." - M. Krishanamachariar, History of Classical Sanskrit Literature,
p. 174. ४. प्रमाणमीमांसा, प्रस्तावना, पृ० ३६-३७ ५. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० २६१
वही, पृ० २४१ कारय प्रसरं सिद्ध ! हस्तिराजमशंकितम् ।
त्रस्यन्तु दिग्गजाः किं तैर्भूस्त्ययैवोद्धृता यतः ।। - प्रभावकचरित, २२/६७ ८ वही, पृ० ३०० ६. कुमारपालचरित, (कुमारपालचरित्रसंग्रह) पृ०२०
___V.Raghvan, Cultural Leaders of India, p.88 99. Hemchandra was introduced to the court of Jayasingh before the conquest of Mālvā.
- Bihler, The life of Hemchandracharya, p. 14. १२. प्रमाणमीमांसा, प्रस्तावना, पृ०४० १३. A History of Indian Literature, pt. II, p. 463; प्रबन्धचिन्तामणि, भा० १, पृ० ६०
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