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________________ पातञ्जलयोग एवं जैनयोग का तुलनात्मक अध्ययन में अहमदाबाद से साठ मील दूर स्थित 'धुन्धका" नामक गांव माना जाता है। इनके पिता चामुण्डा गोत्रीय शैवधर्मानुयायी मोढ़वंशीय वणिक (वैश्य) थे। इनके पिता का नाम चाचिग और माता का नाम पाहिणी अथवा चाहिणी देवी था। हेमचन्द्र का बचपन का नाम चंगदेव या चांगदेव था। सोमप्रभसूरि के अनुसार जिस समय बालक चांगदेव माता के गर्भ में था, उस समय माता ने कई आश्चर्यजनक स्वप्न देखे थे। चांगदेव के माता-पिता दोनों ही जैनधर्म में श्रद्धा रखते थे। भाता पाहिणी तो धर्म के प्रति विशेष श्रद्धा रखती थी। चांगदेव का मन भी धर्म के अतिरिक्त अन्य किसी विषय में नहीं लगता था। वह अपनी माता के साथ प्रतिदिन मन्दिर जाया करता था एवं प्रवचन सुनता था। एक बार पूर्णतलगच्छ के देवचन्द्रसूरि ने अपने ज्ञानबल से 'इसके द्वारा जैनधर्म का महान उदय होने वाला है ऐसा जानकर दीक्षा के लिए उसकी माँग की। माता पाहिणी की जैनधर्म के प्रति अत्यन्त श्रद्धा थी, इसलिए उसने अपने पुत्र को बाल्यावस्था में ही मुनि देवचन्द्र को सौंप दिया। यह देवचन्द्र ही हेमचन्द्र के गुरु थे। प्रभावकचरित के अनुसार जब चांगदेव पांच वर्ष के ही थे, तब वि० सं० ११५० में माघ शुक्ल चतुर्दशी के दिन 'खम्बात' प्रदेश में इनका दीक्षा संस्कार हुआ। __ प्रबन्धचिन्तामणि, पुरातनप्रबन्धसंग्रह और प्रबन्धकोश के अनुसार ८ वर्ष की आयु में चांगदेव को की दीक्षा दी गई थी। इसलिए श्री क्लॉट ने चांगदेव की दीक्षा का समय वि० सं० ११५४ उपयुक्त माना है।११ दीक्षा के बाद चांगदेव का नाम बदलकर सोमचन्द्र रख दिया गया।१२ दीक्षा के पश्चात् बालक सोमचन्द्र अपने गुरु के सान्निध्य में रहने लगा। परिणामस्वरूप पूर्वजन्म के संस्कार, तीव्रस्मरणशक्ति, सहजात असाधारण प्रतिभा और सर्वतोमुखी बुद्धि के द्वारा एवं गुरु की कृपा से अल्प परिश्रम से ही शास्त्रज्ञान प्राप्त किया। इसप्रकार, अल्पकाल में ही सोमचन्द्र ने न्याय, तर्क, व्याकरण एवं काव्य आदि समस्त शास्त्रों में पारंगत होकर अपार ज्ञानराशि का संचय किया। उनकी असाधारण विद्वत्ता एवम् अनुपम प्रतिभा से आकर्षितहोकर देवचन्द्रसूरि ने वि० सं० ११६६ को वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन मध्याहन काल में खंभात नगर में चतुर्विध संघ के समक्ष उन्हें सहर्ष 'सूरिपद' की उपाधि प्रदान की। विद्वानों का मत है कि इस महोत्सव पर होने वाला समस्त व्यय नागपुर के एक धनद नामक व्यापारी ने वहन किया था।१५ ॐutobe १ यह गांव वर्तमान में भाधर नदी के दाहिने तट पर अहमदाबाद से उत्तर पश्चिम में ६२ मील की दूरी पर स्थित है। प्रभावकचरित, २२/२६; प्रबन्धचिन्तामणि, भाग १, पृ० ८३; Indian Antiquary, VXII, p. 254, no. 852 पुरातनप्रबन्धसंग्रह, पृ० १२३ । प्रबन्धकोश, पृ० ६७; कुमारपालचरित्रसंग्रह, पृ० १८ प्रबन्धचिन्तामणि, भाग ६, पृ० ८३ प्रभावकचरित, २२/२७ कुमारपालप्रतिबोध, सोमप्रभसूरि, (कुमारपालचरित्रसंग्रह) पृ० ११७ वही, पृ० २१-२२ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित. प्रशस्ति पद्य, १२-१६ प्रभावकचरित, पृ० ३४७ ८. प्रबन्धचिन्तामणि, भाग-१, पृ०८३ पुरातनप्रबंधसंग्रह, पृ० ३७ १०. प्रबन्धकोश, पृ० ६७ 99. Indian Antiquary, V XII, p. 254, n. 852 १२. हेमचन्द्राचार्य जीवनचरित, पृ० १०; प्रमाणमीमांसा, प्रस्तावना, पृ० ३६, काव्यानुशासन, प्रस्तावना, पृ० २६७-२६८, वि० भा० मुसलगांवकर, आचार्य हेमचन्द्र, पृ० १६ आचार्यो हेमचन्द्रोऽभूत्तत्पादाम्भोजषट्पदः। तत्प्रसादादधिगत-ज्ञानसंपन्महोदयः ।। - त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, प्रशस्ति पद्य १५ प्रबंधचिन्तामणि, भा० १, पृ० ८४ १५. आ० हेमचन्द्र और उनका शब्दानुशासन : एक अध्ययन, पृ० १७ ; प्रमाणमीमांसा, प्रस्तावना, पृ० ३७; Indian Antiquary, VXII, p.254, n. 852 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001981
Book TitlePatanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAruna Anand
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2002
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size25 MB
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