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________________ 12 पातञ्जलयोग एवं जैनयोग का तुलनात्मक अध्ययन वि०सं० १७६६ (ई० १८वीं शती) में देवेन्द्रनन्दि ने 'ध्यानदीपिका' नामक गुजराती ग्रन्थ की रचना की। इसमें १२ भावना, रत्नत्रय, महाव्रत, ध्यान, मन्त्र तथा स्याद्वाद का निरूपण है। कहा जाता है कि जो शुभचन्द्र के ज्ञानार्णव का लाभ नहीं ले सकते, उनके लिए यह साररूप में लिखी गई है। १८.वीं शताब्दी में विनयविजयगणि ने 'शान्तसुधारस' की रचना की, जो भावनायोग की सुन्दर कृति है। २०वीं शती में 'जैनयोग' के नाम से पाश्चात्य विद्वान् आर. विलियम्स ने एक पुस्तक लिखी, परन्तु इस पुस्तक में जैनयोग से सम्बन्धित कोई सामग्री नहीं है, अपितु इसमें योग के आधारभूत श्रावकाचार (श्रावक के बारह व्रत) का ही विश्लेषण किया गया है। वि०सं० २०१८ (२०वी-२१वीं शती) में आ० श्रीतुलसी ने 'मनोनुशासनम् नामक एक ग्रन्थ की रचना की, जो पातञ्जलयोगसूत्र की भाँति सूत्रात्मक शैली में निबद्ध है। इसी युग में मुनि नथमल ने 'जैनयोग' नामक पुस्तक लिखी। इसमें जैनयोग का एक नई शैली से प्रतिपादन हुआ है। २०वीं शती में ही आत्माराम जी महाराज द्वारा 'जैनागमों में अष्टांगयोग' नामक एक लघु कृति की रचना की गई। बाद में लगभग ५० वर्ष बाद १६८३ में इसी कृति को आधार बनाकर उन्होंने 'जैनयोग सिद्धान्त और साधना" नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की, जिसमें बड़ी सुन्दर शैली में भारतीय योगविद्या का तुलनात्मक चिन्तन प्रस्तुत करते हुए जैनयोग की विशेषताओं को उजागर किया गया है। जैनसाहित्य का बृहद् इतिहास में योग विषयक कुछ अन्य ग्रन्थों का भी उल्लेख किया गया है, जिनमें अज्ञातकर्तृक ध्यानविचार, धनराजकृत वैराग्यशतक, मुनि न्यायविजयकृत अध्यात्मतत्त्वालोक, विजयसिंहसूरिकृत साम्यशतक, अज्ञातकर्तृक योगसार एवं योगप्रदीप, अज्ञातकर्तृक ध्यानचतुष्ट्य, यशःकीर्तिकृत ध्यानसार, नेमिदासकृत ध्यानमाला, अज्ञातकर्तृक समाधिद्वात्रिंशिका आदि हैं। __जिनरत्नकोश' में 'योग' शब्द से प्रारम्भ होने वाली कुछ ऐसी कृतियाँ निर्दिष्ट हैं, जिनके रचयिताओं के नाम नहीं दिये गये। उनके नाम इस प्रकार हैं-योगदृष्टिस्वाध्यायसूत्र, योगभक्ति, योगमाहात्म्यद्वात्रिंशिका, योगरत्नसमुच्चय, योगरत्नावली, योगविवेकद्वात्रिंशिका, योगसंकथा, योगसंग्रह, योगसंग्रहसार, योगानुशासन और योगावतारद्वात्रिंशिका । ये कृतियाँ प्रायः अनुपलब्ध हैं। इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी योग विषयक ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है, जिनके लेखकों का नाम निर्देश किया गया है - योगतरंगिणी पं० जिनदत्तसूरि योगदीपिका पं० आशाधर योगदीपिका यशोविजय योगप्रदीप देवानन्द योगभेदद्वात्रिंशिका परमानन्द * Tus १. ध्यानदीपिका, अध्यात्मज्ञान प्रसारक मण्डल, सन् १६२६. २. शान्तसुधारस, (अनु०) मनसुख भाई पी० मेहता भगवानदास म० मेहता, भावनगर, वि० सं०२४६२ 3. Jain Yoga, R. Williams, Oxford University Press, London, 1963 मनोनुशासनम्, जैनश्वेताम्बर तेरापन्थी महासभा, गोरखपुर, संवत् २०२१. जैनयोग, आदर्श साहित्य संघ, यूरु. १६७८ जैनागमों में अष्टांगयोग, आत्माराम जैन प्रकाशनालय, लुधियाना, १६३३ जैनयोग : सिद्धान्त और साधना. (संपा०) श्री अमरमुनि, आत्मज्ञानपीठ, मानसा मंडी, पंजाब, १६८३ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ४, पृ० २८८. जिनरत्नकोश (भाग १), भण्डारकर प्राच्य विद्या संशोधन मन्दिर, पूना, १६४४. जिनरत्नकोश, भाग १, पृ० ३२१-३२५; जैनसाहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ४, पृ० २५६ .g Jain Education International. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001981
Book TitlePatanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAruna Anand
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2002
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size25 MB
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