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पातञ्जल एवं जैनयोग-साधना-पद्धति तथा सम्बन्धित साहित्य
रचनाएँ अज्ञातकर्तृक प्राप्त होती हैं, जिनमें आत्मा और परमात्मा से सम्बन्ध स्थापित करने के उपाय वर्णित हैं। १३वीं शताब्दी में ही रविचन्द्र मुनीन्द्र कृत 'आराधनासारसमुच्चय, १३-१६ वीं शती के श्री गुरुदास कृत 'योगसारसंग्रह' नामक संस्कृत-पद्यात्मक योग विषयक ग्रन्थों का भी उल्लेख मिलता है।
अर्वाचीनयुग ( ई० १५वीं शती से वर्तमानकाल तक )
अर्वाचीनयुग में आगमकाल व मध्यकाल में प्रचलित परम्परा को ध्यान में रखते हुए योग के विषय को अधिक स्पष्ट करने का कार्य प्रारम्भ हुआ। जैनों द्वारा वैदिक ग्रन्थों पर टीका लिखने का कार्य भी इसी युग में आरम्भ हुआ था। इस काल के जैनयोग साहित्य का विवरण इस प्रकार है
१५ वीं शताब्दी की एक कृति मुनि सुन्दरसूरि की है। उसका नाम 'अध्यात्मकल्पद्रुम'? है। इसमें उपदेशात्मक शैली में योग का निरूपण है। यह कृति मुमुक्षुओं को ममता के परित्याग, कषायादि के निवारण व मनोविजय से वैराग्य पथ के अनुरागी बनने तथा समता एवं साम्य का सेवन करने का उपदेश देती है।
भास्करनन्दि (१६वीं शती) ने संस्कृत भाषा में 'ध्यानस्तव' नामक ग्रन्थ की रचना की। इसमें १०० पद्य हैं। इस कृति को उन्होंने अपने चित्त की एकाग्रता के लिए लिखा है।
ई० १५६६ (वि०सं० १६२१) में 'ध्यानदीपिका' नाम से सकलचन्द्र ने संस्कृत-पद्यात्मक ग्रन्थ की रचना की, जिसमें ध्यान के स्वरूप व भेदों आदि पर विचार किया गया है ।
कवि राजमल्ल, वि०सं० १६०३-६२ (१६वीं शती) कृत 'अध्यात्मकमलमार्तण्ड' नामक २०० श्लोक-परिमाण संस्कृत-पद्यात्मक कृति चार परिच्छेदों में विभक्त है। प्रथम परिच्छेद में मोक्ष व मोक्षमार्ग, द्वितीय में द्रव्य सामान्य का लक्षण, तृतीय में द्रव्यविशेष, तथा चतुर्थ में जीवादि सात तत्त्वों एवं नौ पदार्थों का निरूपण हुआ है।
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वि०सं० १६६६ (ई० १६६६) में भावविजय ने 'ध्यानस्वरूप' नामक ग्रन्थ की रचना की। इसमें मुख्यतः ध्यान का ही वर्णन है।
ई० १६वीं - १७वीं शती में यशोविजय नामक एक अन्य आचार्य का पदार्पण हुआ, जिन्होंने योग विषयक अनेक ग्रन्थों की रचना कर योग की अजस्त्र धारा प्रवाहित की । यथा - अध्यात्मसार, अध्यात्मोपनिषद्, द्वात्रिंशद्द्द्वात्रिंशिका" (योगावतार बत्तीसी), पातञ्जलयोगसूत्रवृत्ति, योगविंशिका टीका तथा ज्ञानसार (अष्टक) । १२ इनका परिचय अग्रिम पृष्ठों में दिया गया है।
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भा० ४, पृ० २५५
अध्यात्मकल्पद्रुम, निर्णयसागर मुद्रणालय, बंबई, सन् १६६६
कुछ लोग इन्हें १२वीं शती का मानते हैं।
ध्यानस्तव, वीर सेवा मन्दिर, दिल्ली, सन् १६७६
ध्यानदीपिका, सोमचन्द्र शाह, अहमदाबाद, १६१६
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अध्यात्मकमलमार्त्तण्ड, माणिकचन्द्र दिगम्बरजैन ग्रन्थमाला, वि० सं० १६६३
उल्लिखित, जिनरत्नकोश, भा० १, पृ० १६६
अध्यात्मसार, जैनधर्मप्रसारक सभा, भावनगर, वि०सं० १६६५
(क) ज्ञानसार, आत्मानन्द सभा, भावनगर, सन् १९७१
(ख) ज्ञानसार, ओमप्रकाश जैन, प्रताप मार्किट, दिल्ली, १६६८
अध्यात्मोपनिषद्, केशरबाई ज्ञान भण्डार स्थापक, जामनगर, वि०सं० १६४४
द्वात्रिंशद्द्द्वात्रिंशिका, यशोविजय, (संपा० ) पं० सुखलाल, जैन आत्मानन्दसभा, भावनगर, सन् १६६६
पातंजलयोगदर्शन एवं हारिभद्रीया योगविंशिंका टीका, (संपा०) पं० सुखलाल जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, सन् १६२२
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