SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पातञ्जलयोग एवं जैनयोग का तुलनात्मक अध्ययन रामसेनाचार्य कृत 'ध्यानशास्त्र' अथवा 'तत्त्वानुशासन' का प्रतिपाद्य विषय मुख्यतः ध्यान है। इसमें मन की एकाग्रता के लिए ध्यान को महत्व देते हए ध्यान के भेदों व नैमित्तिक एवं सहायक तत्त्वों के साथ-साथ मन्त्र, जप, आसन आदि का भी विवेचन है। मुनि रामसिंह (११००ई० से पूर्व) द्वारा रचित 'पाहुडदोहा'२ अपभ्रंश की अतिशय उल्लेखनीय आध्यात्मिक रचना है, जिसका योगीन्दुदेव कृत 'परमात्मप्रकाश' और 'योगसार' से बहुत अधिक साम्य है। इसमें झूठे योगियों को खूब फटकारा गया है। ई० ११वीं शती में शुभचन्द्राचार्य ने 'ज्ञानार्णव' नामक योग विषयक ग्रन्थ की रचना की। इसमें अष्टांगयोग, हठयोग व तन्त्रयोग के महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला गया है। प्राणायाम, भेद-प्रभेद सहित ध्यान, मन्त्र, जप, शकुन, नाड़ी और पवनजय आदि विषयों का विस्तृत एवं स्पष्ट चित्रण इस ग्रन्थ की विशेषता है। इस पर तीन टीकाएँ उपलब्ध हैं - १. तत्त्वत्रय प्रकाशिनी – (दिगम्बर आचार्य श्रुतसागर) २. नयविलास कृत टीका ३. अज्ञातकर्तृक टीका ई० १२वीं शताब्दी में हेमचन्द्रसूरि ने सहस्रश्लोकी 'योगशास्त्र' की रचना की। इसका प्रणयन सतशास्त्र, सदगुरुवचन तथा स्वानुभव के आधार पर किया गया है। हेमचन्द्र ने इसमें योग की पारम्परिक पद्धतियों का निरूपण कर मन के चार प्रकार बताये हैं। इसमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा एवं ध्यान का भी विस्तृत वर्णन है। मुमुक्षुओं के लिए यह कृति बालकवच के समान है। इस पर उनकी स्वोपज्ञ टीका तथा निम्नलिखित अन्य टीकाएँ भी हैं - १. अमरकीर्ति के शिष्य इन्द्रनन्दी कृत योगिरमा टीका, २. अमरप्रभसूरि कृत वृत्ति, ३. अज्ञातकर्तृक टीका-टिप्पण, ४. अवचूरि (अज्ञातकर्तृक), ५. सोमसुंदरसूरि कृत बालावबोध, ६. इन्द्रसौभाग्यगणि कृत वार्तिक आदि । १३वीं शताब्दी में पं० आशाधर की कृति 'अध्यात्मरहस्य अपर नाम 'योगोद्दीपन' प्राप्त होती है। इसमें आध्यात्मिक रहस्यों का सुन्दर प्रतिपादन है। इसके अतिरिक्त, 'योगसार' एवं 'योगप्रदीप' नामक दो ॐ ॐ908 १. तत्त्वानुशासन, वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, दिल्ली, १६६३. पाहुडदोहा, (संपा०) हीरालाल जैन, कारंजा जैन पब्लिकेशन सोसाइटी, वि० सं० १९६० (क) ज्ञानार्णव, (संपा०) बालचन्द्र शास्त्री, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर, सन् १६२७ (ख) ज्ञानार्णव, परमश्रुत प्रभावक मंडल, श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास, वि० सं० २०३७ (क) योगशास्त्र, ऋषभचन्द्र जोहरी, किशनलाल जैन, दिल्ली सन् १६६३ (ख) योगशास्त्र, (संपा०) गो० जी० पटेल, जैन साहित्य प्रकाशन समिति अहमदाबाद १६३८. (ग) योगशास्त्र : एक परिशीलन, अमरमुनि, सन्मति ज्ञानपीठ आगरा, सन् १६६३. द्रष्टव्य : मोहराजपराजय, (संपा.) चतुर्विजय, अंक १ योगशास्त्रविवरण, जैन धर्म प्रसारक सभा, भाव नगर, ई० १६२६ जैनसाहित्य का बृहद इतिहास (भा०४), पृ० २४५ ८. अध्यात्मरहस्य, वीरसेवा मन्दिर ट्रस्ट, दिल्ली, सन् १६५७ योगसार, (अज्ञातकर्तृक), जैन साहित्य विकास मण्डल, बंबई, सन् १६६८ १०. योगप्रदीप, (अज्ञातकर्तृक), जैन साहित्य विकास मण्डल, बंबई, ई० सन् १६६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001981
Book TitlePatanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAruna Anand
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2002
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy