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________________ स्थानकवासी संप्रदाय का जीवनानुभव ( ४६ ) से नहीं जाते । हम लोग तो गांवों के जंगल वाले रास्ते से होकर चले जाते हैं । तब हमने कहा कि हमें भुसावल पहुँचना है, तो वहाँ जाने का वैसा कोई जंगल का सीधा रास्ता है ? इत्यादि तब हमें कहा गया कि अमुक रास्ते से पहाड़ों के बीच होकर जाने से दो-तीन दिन में भुसावल से इधर अमुक मांव पहुँच जाते हैं। हमने उन किसानों से रास्ते आदि की ठीक जानकारी प्रा.त को और उसी रास्ते से आगे जाने का विचार किया । हमने गांव वालों से पूछा कि उस रास्ते का जानकार यहां से कोई जाता हो तो हमें उससे मिला दो। तब गांव के एक मुखिया से किसान ने कहा कि यहां पर गांव के बाहर एक सरकारी चौकी है, वहाँ से रोज एक चोकीदार कुछ कागजात वगैरह लेकर जाता है । यहां से १२-१३ मील के फासले पर पहाड़ी जंगलों के ठीक बीच में सरकारी जंगलात महकमें को बड़ो चौकी है, वहां पर यह चौकीदार कागज पहुँचाता है । आप लोग उसके साथ उस बड़ी चौको पर चले जानो और वहां से फिर वैसा ही कोई चौकीदार आपको मिल जायेगा, जो पहाड़ों के उस पार वाले गांव में पहुँचा देगा, इत्यादि । हम उस दिन उसी गांव में रहे और किसानों के वहाँ से जुवारी की कुछ रोटियाँ और छाछ का पानो लाकर अपनी भूख मिटायी। रात को वह मुखिया सा किसान उस चौकीदार को बुला लाया हमने उसको हमारे जाने की बात समझायी। वह कुछ भला सा आदमी था। सो उसने कहाकि बाबाजी महाराज मैं कल सुबह पाठ-नौ बजे अपनी चौकी से कुछ सरकारी कागज लेकर उस बड़ी चौकी को जाऊगाँ, सो आप लोग भी मेरे साथ चले चलना। पर रास्ता बड़ा टेढ़ामेढ़ो और कई पहाड़ों पर चढ़ने उतरने के बाद वहां पहुँचता है । इसमें ६ से ७ घण्टे लगते हैं । रास्ते में कोई गाँव या पड़ाव जैसी ठहरने की जगह नहीं है । मैं तो महिने में ५-१० दफे वहां जाता रहता हूँ, इसलिए मुझे तो वह रास्ता वेसा विकट नहीं लाता, पर अोरों के लिए वह विकट सा जरूर है । अगर आपकी हिम्मत हो तो मेरे साथ कल चले चलना हम साधुओं को कुछ थोड़ा सा वैसे रास्तों का अनुभव है और अब दक्षिण की ओर जाना ही है तथा प्राधे रास्ते तक आ पहुँचे हैं तो दो-तीन दिन का यह विकट प्रवास पूरा कर लेना चाहिये । इस विचार से हम दूसरे दिन सुबह होते ही उस गांव वाले तीन चार किसानों के घर से कुछ जवारी की रोटियां माँग लाये साथ में कुछ ताजो छाछ और अफीन की भाजो भी मिलगई । मुखिया किसान के वहाँ नहाने के लिए। गरम पानो किया हुआ था उसमें से भी कुछ थोड़ा सा गरम पानी पात्र में ले आये। हमने जल्दी-जल्दी पाहार किया और कपड़े आदि शरीर पर लपेट कर उस चौकीदार की चौकी पर पहुँचे ।। चौकोदार आदिम जाती का था, पर जरा समझदार और कुछ बड़े Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001970
Book TitleMeri Jivan Prapanch Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1971
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size8 MB
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