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________________ ( ४८ ) __ मेरो जीवन प्रपंच कर करते हैं । किसान सुनकर गम्भीर भाव से अपने मकान में चला गया । मेरा बुखार दूसरे दिनु भी नहीं उत्तरा इसलिए दूसरे दिन भी हमें वहीं उस छप्पर में रहना पड़ा । किसान ने दूसरे दिन जरूर थोड़ा सा गरम दूध लेने को हमें आग्रह किया और वह लिया गया । अन्य साधुओं के लिए उसी तरह किसानों के जाकर जवारी की लुखी रोटो और छाछ का पानी भिक्षा के रूप में ले पाए । सर्दी के दिन थे, इसलिए कोई किसान गरम पानी भी हाथ आदि धोने के लिए करते थे, सो हमको लेने योग्य पानी किसी के यहां मिला तो उसे भी एक पात्र में ले पाए । उस किसान के वहाँ से भी दूसरे दिन एक दो जवारी को रोटियाँ बहेर ली। उसके यहाँ अफोम के पत्ता की भाजी बनाई गई थी, वह भी थोड़ सी मिलगई । तीसरे दिन मेरा बुखार कुछ हल्का हुआ, तई उस किसान के वहां से जो थोड़ा बहुत दूध मिला वह पोया । इस तरह ४-५ दिन हमें वहाँ निका लने पड़े । बुखार के हट जाने पर और कुछ थोड़ी सी चलने जैसी शक्ति पाने पर हमने वहां से प्रार के लिए प्रयाण किया । कोई दो तीन दिन धीरे-धीरे चलने के बाद हम एक गांव में पहुँचे, जो भासीरगढ़ की छावना से कुछ ८-१० मील दूरी पर था। हम जिस रास्ते से होकर जा रहे थे वह सड़क से कुछ ५-७ मोल की दूरी पर था ये गांव सब छोटे छोटे किसानों की बस्ती वाले थे । उनमें जैन या अन्य बनिये तथा ब्राह्मण आदि को बस्ती नहीं थी परन्तु किसानों के यहां से हमें जवारी की रोटी, कुछ छाछ और कहीं थोड़ा सा गरम पानी मिल जाया करता । यह रास्ता कुछ पहाड़। सा था और वह निमाड़ का प्रदेश कहलाता था। हमें दक्षिण की और जाना था, जिसका मुख्य रास्ता प्रासीरगढ़ होकर बरहानपुर जाता था। सतपुड़ा के जंगल का उग्र विहार ____ हम जब एक वैसे पड़ाव वाले गांव पहुंचे तो वहां हमें मालूम हुआ कि मालवे में कहीं-कही फ्लेग का प्रकोप होने से, मालवे से उधर जाने वालों को आसेरगढ़ के पास वाली छावनी में कम कम १० दिन के लिए प्लेग प्रतिबंधक केम्प में रहना पड़ता है और टोके लगवाने पड़ते हैं । हमा लिए यह एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई । तब हमने गांव वालों से पूछा कि भाई ! तुम लोग कर्म अमुक गांव जाते होगे तो क्या करते होगे ? तब हमें कहा गया कि हम लोग कभी सड़क के बड़े रास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001970
Book TitleMeri Jivan Prapanch Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1971
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size8 MB
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