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________________ ( २४ ) आगमों का बड़ा विद्वान है। इस पुस्तक की प्रस्तावना में जैन-धर्म की प्राचीनता के बारे में बड़े विस्तार से लिखा गया है । जिसका हम लोगों को कोई ज्ञान नहीं है । हमारे साधु लोग भी इन बातों को बिल्कुल नहीं जानते । मुझे कुछ शौक होने से मैं इनको जानने का प्रयत्न कर रहा हूं । इस पुस्तक की प्रस्तावना में कई बातें ऐसी लिखी गई है जिनके विषय में जैन लोगों का कुछ विचित्र ख्याल हो सकता है । मैं पास ही में बैठा-बैठा अपनी प्रतिलिपे का कार्य कर रहा था । परन्तु उनकी बातें ध्यान से सुन रहा था उस समय तक मुझे जो कुछ थोड़ा सा जैन शास्त्रों का ज्ञान हो गया था उनकी बातें सुन कर मुझे कुछ उस विषय में जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई; परन्तु तपसीजी मन में वैसी कोई जिज्ञासा नहीं थी । उन्होंने उस भाई को इतना ही कहा कि हम साधु लोग तो अपने शास्त्रों के स्वाध्यान के सिवाय अन्य किसी प्रकार का पठन-पाठन आदि नहीं करते, इत्यादि सुनकर वे भाई नमस्कार करके चले गये । मेरे मन में उस भाई की बात से एक नये संस्कार ने अज्ञात भाव से बीजारोपण कर दिया कि मुझे ऐसी बातों का ज्ञान प्राप्त करने का अपने जीवन में प्रयत्न करना चाहिये । इमा बोजाकुर मे भविष्य में मेरे अभ्यास और अध्ययन की इच्छा ने विशिष्ट स्थान प्राप्त कर लिया । मेरो जीवन प्रपंच कथा कुछ दिन देवास में ठहर कर हम लोगों ने उज्जैन की तरफ विहार किया और पाने वाला चौमासा उज्जैन में बिताने का निश्चय हुआ । उज्जैन में चातुर्मास उज्जैन मालवा देश की प्रसिद्ध प्राचीन राजधानी है। उज्जैन का प्राचीन इतिहास भारत वर्ष के प्राचीन इतिहास में बड़ा महत्व का स्थान रखता है । यद्यपि मुझे इन बातों का उस समय कोई ज्ञान नहीं था । तथापि लोगों के मुख से किंवदंतिया सुनने में आई थीं । विक्रम राजा, राजा भरतरी, हरी, तथा खापरिया चोर की कई लोक कथाएं उस प्रदेश में प्रचलित थीं। उज्जैन ही में एक दफा भयंकर कोई देवी प्रकोप हुआ, जिसके कारण पुराना सारा शहर धूल की वर्षा में दब गया और उसके अवशेष प्राज भी वर्तमान उज्जैन नगर से कुछ दूरी पर शिप्रा नदी के पड़ते हैं । लोग उसे धूलकोट वाले स्थान के नाम से पहचानते हैं । तट पर दिखाई - इसी तरह शिप्रा नदी के के लिये भारत वर्ष के कौने कौने से शिव मंदिर, काशी विश्वनाथ के Jain Education International तट पर महाकालेश्वर का प्राचीन शिव मंदिर है जिसके दर्शन हजारों हिन्दू यात्री प्रतिवर्ष प्राते रहते हैं । महाकालेश्वर का यह शिव मंदिर के समान ही पूजनीय माना जाता है। बारह वर्ष For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001970
Book TitleMeri Jivan Prapanch Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1971
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size8 MB
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