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स्थानकवासी संप्रदाय का जीवनानुभव
चलने के बाद कुछ गांवों में होते हुए हम देवास पहुंचे। वहां के जैन भाई भो धर्मदासजी के सम्प्रदाय के आम्नाय वाले थे ।
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नगर के मध्य में छोटा सा राजवाड़ा भी था, जिसमें राज्य के राजवाड़े के सामने एक जैन महाजन का नया सा मकान बना हुआ था हम साधुओं को ठहराया गया । शायद वहां कोई धर्मस्थानक नहीं था बार आते जाते रहे थे । इसलिये ग्रामवासी सभी श्रावक भाई बहिन उनके अच्छे सुपरिचित थे । पहले वे कभी वहां गये थे तब उनके साथ उनके बड़े शिष्य केवल अचलदास जी ही थे। अबकी बार वे हम मुन्नालालजी आदि तीन नये शिष्यों के साथ वहां पहुंचे थे इसलिये गाँव के पुराने श्रावकों को अपने गुरु सम्प्रदाय की दृष्टि से कुछ ग्रानंदसा हुआ। जिस मकान में हम ठहरे थे उसके सामने ही राजवाड़े का आगे का विशाल चौक सा था। जिसमें राज्यकर्ताओंों की सवारी की बग्गियां वगैरह पड़ी रहती थीं। उस समय मोटरें आई नहीं थी । स्टेट के मालिक अथवा घराने की स्त्रियां कहीं बाहर जाती तो दो घोड़ों की बग्गियों में बैठकर जाती प्राती रहती थीं ।
राजवाड़े के मुख्य दरवाजे पर दो बंदूकधारी संतरी सदा तैनात रहते थे। सुबह के समय नियमानुसार स्टेट के जितने भी मिलिट्रो और पुलिस के जवान नगर में रहते थे उन सबकी आधे घंटे तक कवायद होती थी। तीन चार बिगुल वाले और दो एक ढोल वाले जवान मिलकर बैंड का काम किया करते थे । मकान में बैठा बैठा यह दृश्य मैं कुतूहल के साथ देखा करता था। क्यों कि ऐसी परेड आदि का देखने सुनने का मुझे कभी कोई प्रसग नहीं मिला था। दिन में मैं अपना प्रतिलिपि का कार्य नियमित रूप से करता रहता था ।
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कर्ताहर्ता रहा करते थे उसी उसके ऊपर की मंजिल में
तपसी जी उस नगर में कई
एक दिन दोपहर को एक अच्छे से संस्कारी दिखने वाले भाई तपसी जी महाराज के दर्शन करने के निमित्त आये, वे वहां के एक धनिक कुटुम्ब के मुखिया थे । मालूम हुआ कि ये देवास के रहने वाले है - लेकिन इन्दौर में वकालत करते हैं । वे अच्छे प्रसिद्ध वकील थे । प्रसंगवश देवास आये हुए थे और सुनकर तम्सी जी महाराज के दर्शन करने चले आये । सामान्य रूप से वंदन वगेरह किया और तपसीजी ने तो इनको धर्म ध्यान आदि के विषय में पूछा तो उन्होंने कहा- महाराज हम लोग तो वकालत का काम करते हैं, इसलिये सामयिक आदि और कोई धार्मिक क्रियाएं करने का हमें अवसर नहीं मिलता। हां जरूर साहित्य के पढ़ने का मुझे शौक है और मैं उसे पढ़ता रहता हूँ। अभी कुछ दिन पहले से मैं एक अंग्रेजी भाषा की पुस्तक पढ़ने लगा हूँ और यही पुस्तक मेरे हाथ में है । यह पुस्तक विलायत में छपी हैं और इसमें अपने धर्म के उत्तराध्ययन और कल्पसूत्र के अंग्रेजी भाषा में किये गये अनुवाद है । इस अनुवाद का करने वाला एक बहुत बड़ा जर्मन विद्वान है - जो प्राकृत भाषा और जैन
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