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जर्मन रेडियो द्वारा भारत राष्ट्र को आह्वान किया था। वह हाऊस जर्मनी में भारतीय संस्कृति, विद्या आदि का एक केन्द्र बन गया ।
इस संस्था के विस्तार अभिवृद्धि, समृद्धि की योजना लेकर गांधी जी से मिलने मुनि जी भारत याये। ऐसे समय यहाँ नमक सत्याग्रह प्रारम्भ हो गया। आन्दोलन की दूसरी टोली के अगुवा बन मुनि जी डांडी यात्रा को चल पड़े । अंग्रेज शासक ऐसा कब देख सकते थे। मुनिजी को नासिक सेन्ट्रल जेल में बन्द कर दिया गया। जेल में वीर नरीमान, क. मा. मुंशी, सेठ जमनालालजी बजाज, मुकुन्द मालवीय आदि नेता इनके सानिध्य से ज्ञानार्जन करते रहे । जेल-जीवन में अनेक भारतीय नेताओं से विचार विनिमय करने का अवसर मिला। __ जेल से बाहर आते ही गुजरात विद्यापीठ से गुरुदेव रवीन्द्र नाथ के आमंत्रण पर शान्ति निकेतन की यात्रा पर निकल पड़े । वहाँ पर जैन चेयर की स्थापना की और शांतिनिकेतन के विश्व भारती विश्वविद्यालय में जैन साहित्य विभाग के प्राचार्य हो गये। यही से सिंधी जैन ग्रन्थ माला का सम्पादन प्रकाशन प्रारंभ किया। यह कार्य अनवरत चल रहा है। इसमें ७६ ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। इस ग्रन्थ माला का समस्त आर्थिक व्यय दानवीर सेठ बहादुर सिंह जी सिंघी ने किया। मुनि जी के इस कार्य को देश-विदेश के मूर्धन्य विद्वानों ने सराहा। इन्होंने गुप्त लुप्त अनेक ग्रन्थों, ग्रन्थकारों को प्रकाश में लाकर अमर कर दिया ।
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